सुना था कि कभी कभी किसी की सुन्दरता ही उसके पतन का कारण बन जाती है। कश्मीर की किस्मत भी शायद कुछ ऐसी ही रही है। आज मैं आपको कश्मीर की कहानी सुनाने जा रही हूं। कैसे कश्मीर दो देशों के बीच दुश्मनी का कारण बन गया और वह कौन लोग हैं जो इस विवाद को जन्मदाता थे? मेरी इस कहानी में शायद आपको आपके बहुत सारे प्रश्नों का उत्तर मिल जाऐ।
हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के बंटवारे के तुरन्त बाद से पाकिस्तान किसी भी तरह जम्मू-कश्मीर पर अपना कब्जा चाहता था। इस उद्वेश्य को पूरा करने के लिये वह कश्मीर पर तीन बार 1947, 1965, 1971 और 1999 हमला भी कर चुका है।परन्तु हर बार हमले में विफल होने पर वह कश्मीर को अधिकार में लेने के लिये नई युक्तियों और तिकड़मों का सहारा ले रहा है।
बंटवारे के समय भारत के अंतिम गर्वनर जनरल और वाइसराय लार्ड लुई माउन्टबेन ने कश्मीर के तत्कालीन महाराजा को सलाह दी थी कि वह 15 अगस्त 1947 से पहले भारत या पाकिस्तान में से किसी एक में शामिल हो जाऐं। पर कश्मीर के राजा निर्धारित समय पर कोई फैसला नहीं ले सके। उन्होनें भारत और पाकिस्तान दोनो के साथ व्यापार, संचार और अन्य सेवाओं को पहले की तरह बनाऐ रखने के लिये यथास्थिति बनाऐ रखने का प्रस्ताव किया। पाकिस्तान ने प्रस्ताव को स्वीकार करते हुऐ उनके साथ यथास्थिति बनाऐ रखी। पर पाकिस्तान के इस समझौते को स्वीकार करने के पीछे भी बहुत बड़ा उदृदेश्य था। वह किसी भी तरह जम्मू-कश्मीर पर कब्जा करना चाहता था। इसके लिये उसने सबसे पहले समझौते का उल्लघंन करते हुऐ कश्मीर को आवश्यक वस्तुओं- खाद्यान्न, पेट्रोल, दवाई आदि की आपूर्ति रोकी और फिर उत्तर पश्चिम सीमा प्रान्त के अफरीदी कबाइलियों को जिहाद के नाम पर भड़का कर कश्मीर में रक्तपात, लूटपाट और आगजनी का सूत्र बनाकर भेजा। इन कबाइलियों को हथियार, गोलाबारूद और परिवहन की सुविधा के लिये पाकिस्तान ने उनके साथ अपनी सेना के कुछ अफसरों को कबाइली वेश-भूषा मे भेजा। इन कबाइलियों ने सियालकोट, श्रीनगर मार्ग मे बढ़ते हुऐ कश्मीर में रक्तपात और बलात्कार और आगजनी का ताण्डव नृत्य शुरू कर दिया। 23 अक्टूबर तक ये लोग श्रीनगर से केवल 30 मील दूर रह गये थे। रियासत की सेना और पुलिस पग पग पर उनका सामना कर रही थी। लेकिल कबाइलियों की विशाल संख्या के सामने वह कमजोर पड़ रही थी।
इस स्थिति में कश्मीर की जनता के जान माल की रक्षा के लिये कश्मीर के राजा हरि सिहं ने 26 अक्टूबर 1942 को भारतीय संघ मे विलय होने के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये। 27 अक्टूबर को भारतीय सेना श्रीनगर हवाई अड्डे पर उतरना और पाकिस्तानी हमलावरों को पीछे धकेलना शुरू कर दिया।
कश्मीर पर पाकिस्तान के इस अचानक और अकारण हमले के विरूद्ध भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद मे शिकायत की। तब सुरक्षा परिषद ने दोनों पक्षों से 31 दिसम्बर 1948 से युद्ध विराम करने को कहा। इसी के साथ भारत-पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र आयोग ने अपने 13 अगस्त 1948 के प्रस्ताव के अंतर्गत पाकिस्तान से जम्मू कश्मीर से अपनी सेनाऐं, अनियमित लड़ाकों और बाहरी लोगों को वापिस बुलाने को कहा। साथ ही भारत को शांति बनाऐ रखने के लिये सेना रखने की अनुमति भी दी गयी।
क्या इसके बाद कश्मीर में सचमुच शांति बहाल हो गयी और कैसे कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे मे चला गया? इस रहस्य से हम कल पर्दा उठायेगें।आशा करती हूं कि आप मेरे साथ बने रहेंगें,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के बंटवारे के तुरन्त बाद से पाकिस्तान किसी भी तरह जम्मू-कश्मीर पर अपना कब्जा चाहता था। इस उद्वेश्य को पूरा करने के लिये वह कश्मीर पर तीन बार 1947, 1965, 1971 और 1999 हमला भी कर चुका है।परन्तु हर बार हमले में विफल होने पर वह कश्मीर को अधिकार में लेने के लिये नई युक्तियों और तिकड़मों का सहारा ले रहा है।
बंटवारे के समय भारत के अंतिम गर्वनर जनरल और वाइसराय लार्ड लुई माउन्टबेन ने कश्मीर के तत्कालीन महाराजा को सलाह दी थी कि वह 15 अगस्त 1947 से पहले भारत या पाकिस्तान में से किसी एक में शामिल हो जाऐं। पर कश्मीर के राजा निर्धारित समय पर कोई फैसला नहीं ले सके। उन्होनें भारत और पाकिस्तान दोनो के साथ व्यापार, संचार और अन्य सेवाओं को पहले की तरह बनाऐ रखने के लिये यथास्थिति बनाऐ रखने का प्रस्ताव किया। पाकिस्तान ने प्रस्ताव को स्वीकार करते हुऐ उनके साथ यथास्थिति बनाऐ रखी। पर पाकिस्तान के इस समझौते को स्वीकार करने के पीछे भी बहुत बड़ा उदृदेश्य था। वह किसी भी तरह जम्मू-कश्मीर पर कब्जा करना चाहता था। इसके लिये उसने सबसे पहले समझौते का उल्लघंन करते हुऐ कश्मीर को आवश्यक वस्तुओं- खाद्यान्न, पेट्रोल, दवाई आदि की आपूर्ति रोकी और फिर उत्तर पश्चिम सीमा प्रान्त के अफरीदी कबाइलियों को जिहाद के नाम पर भड़का कर कश्मीर में रक्तपात, लूटपाट और आगजनी का सूत्र बनाकर भेजा। इन कबाइलियों को हथियार, गोलाबारूद और परिवहन की सुविधा के लिये पाकिस्तान ने उनके साथ अपनी सेना के कुछ अफसरों को कबाइली वेश-भूषा मे भेजा। इन कबाइलियों ने सियालकोट, श्रीनगर मार्ग मे बढ़ते हुऐ कश्मीर में रक्तपात और बलात्कार और आगजनी का ताण्डव नृत्य शुरू कर दिया। 23 अक्टूबर तक ये लोग श्रीनगर से केवल 30 मील दूर रह गये थे। रियासत की सेना और पुलिस पग पग पर उनका सामना कर रही थी। लेकिल कबाइलियों की विशाल संख्या के सामने वह कमजोर पड़ रही थी।
इस स्थिति में कश्मीर की जनता के जान माल की रक्षा के लिये कश्मीर के राजा हरि सिहं ने 26 अक्टूबर 1942 को भारतीय संघ मे विलय होने के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये। 27 अक्टूबर को भारतीय सेना श्रीनगर हवाई अड्डे पर उतरना और पाकिस्तानी हमलावरों को पीछे धकेलना शुरू कर दिया।
कश्मीर पर पाकिस्तान के इस अचानक और अकारण हमले के विरूद्ध भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद मे शिकायत की। तब सुरक्षा परिषद ने दोनों पक्षों से 31 दिसम्बर 1948 से युद्ध विराम करने को कहा। इसी के साथ भारत-पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र आयोग ने अपने 13 अगस्त 1948 के प्रस्ताव के अंतर्गत पाकिस्तान से जम्मू कश्मीर से अपनी सेनाऐं, अनियमित लड़ाकों और बाहरी लोगों को वापिस बुलाने को कहा। साथ ही भारत को शांति बनाऐ रखने के लिये सेना रखने की अनुमति भी दी गयी।
क्या इसके बाद कश्मीर में सचमुच शांति बहाल हो गयी और कैसे कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे मे चला गया? इस रहस्य से हम कल पर्दा उठायेगें।आशा करती हूं कि आप मेरे साथ बने रहेंगें,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
8 टिप्पणियां:
चलिए आप कह रही हैं तो बने रहते हैं साथ ही!1
हम साथ हैं। आप सुनायें!
इंतजार है अगली कडी का .....
www.aarambha.blogspot.com
माफ़ी चहाता हु, मुझे लगता हे कही तारीखॊ की गड्बड होगई हे आप से ??
बंटवारे के समय भारत के अंतिम गर्वनर जनरल और वाइसराय लार्ड लुई माउन्टबेन ने कश्मीर के तत्कालीन महाराजा को सलाह दी थी कि वह*** 15 अगस्त 1947*** से पहले भारत या पाकिस्तान में से किसी एक में शामिल हो जाऐं
इस स्थिति में कश्मीर की जनता के जान माल की रक्षा के लिये कश्मीर के राजा हरि सिहं ने ***26 अक्टूबर 1942*** को भारतीय संघ मे विलय होने के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये। 27 अक्टूबर को भारतीय सेना श्रीनगर हवाई अड्डे पर उतरना और पाकिस्तानी हमलावरों को पीछे धकेलना शुरू कर दिया।
१९४२ मे तो पकिस्तान बना ही नही था.
बुरा लगे तो माफ़ करना,गलती हम से भी हो सकती हे
धन्यवाद संजीव जी ,अनूप जी और तिवारी जी
आशा है कि आपको ये कथा पसन्द आयेगी।
धन्यवाद राज जी
सही कहा आपने कि गलती हम में से किसी से भी हो सकती है।मुझसे लिखने में शायद कुछ गलती हो गयी।क्षमा प्रार्थी हूं।
अगली कड़ी की प्रतीक्षा है ।
घुघूती बासूती
aapke sabhi lekh ucch koti ke hain, aap apne laxya me lage raho, ek din aayega jab word me aap desh ko roshan karogi, best of luck.
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