
अल्पसंख्यक परिवार के घर में डकैती,दलित महिला के साथ बलात्कार,पिछड़े वर्ग के छात्र के साथ मार-पीट।इस तरह की कई घटनाऐं हम लोग आये दिन अखबारों आदि में पढ़ते रहते हैं।ये घटनाऐं निश्चित रूप से समाज के लिये शर्मनाक हैं पर इन घटनाओं को किसी वर्ग विशेष से जोड़कर लिखा जाना उससे भी अधिक शर्मनाक है।क्योंकि सर्वप्रथम तो ये हादसे समाज के किसी भी वर्ग के साथ घटित हो सकते हैं क्योंकि इस तरह के कुकर्म करने वालों का कोई धर्म या मजहब नहीं होता है और दूसरा यह कि इन हादसों को किसी विशेष वर्ग जोड़ना उन्हें स्वयं ही समाज से अलग दर्शाता है।इस तरह किसी घटना के साथ ‘दलित’ शब्द जोड़ना पीडित के घावों पर नमक का काम करता है और समाज के अन्य वर्गों के प्रति उनके मन में कड़वाहट भर देता है।
कोई आपको इसलिये नौकरी देता है क्योकि आप दलित,अल्पसंख्यक या मुसलमान हैं वहीं दूसरी ओर कोई आपको इसी लिये नौकरी पर नहीं रखता क्योंकि आप अल्पसंख्यक हैं।ये कैसा गणित हुआ भला कि यदि बलात्कार यदि किसी दलित लड़की के साथ हुआ तो आन्दोलन हो गया,यह घटना पहले पन्ने की खबर बन गयी और यदि किसी सामान्य जाति की लड़की के साथ हुआ तो रोजमर्रा की खबरों में शामिल हो गयी।क्या दोनों की पीड़ा में अंतर है?दोनों ही समान दौर से गुजर रही हैं।उनकी पीड़ा को कोई तीसरा नहीं समझ सकता है।पर इस तरह की घटनाओं को आग देकर अपने स्वार्थ की रोटी सेकनें वाले कुछ स्वघोषित बुद्धिजीवी वर्ग की कमी नहीं है इस दुनिया में।जो कि स्वयं को धर्म का ठेकेदार की उपाधि देते हैं।यही वह लोग हैं जो कि समाज को हमेशा से दो भागों मे बॉटते आये हैं।क्योकि इन्ही सब से इनकी रोजी रोटी का जुगाड़ होता है।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है।यह गाथा तो हम वर्षों से गाते आ रहे हैं परन्तु इसी धर्मनिरपेक्षता जैसे सुन्दर शब्द ने समाज को दो भागों में विभाजित कर दिया है।हमारा देश का संविधान कहता है कि देश के सभी नागरिक एक समान हैं पर दूसरी ओर समाज में हादसों को वर्ग विशेष से जोड़ दिया जाता है।किसी जाति विशेष को हादसे के साथ बार –बार उनकी जाति याद दिलाया जाना उन्हें यह एहसास दिलाता है कि उनके साथ यह हादसा उनकी जाति के कारण हुआ और यह भी कि वह औरों से अलग हैं।
दूसरा बड़ा मुदृदा जो भारत के धर्मनिरपेक्षता गाथा की धज्जियॉ उड़ा रहा है वह है-आरक्षण की मांग।यह एक ऐसी चिंगारी है जो किसी भी समाज मे साम्प्रादायिकता फैलाने के लिये काफी है।यदि देश के सभी नागरिक समान हैं तो नौकरी पाने के लिये जाति प्रमाण-पत्र की आवश्यकता क्यों पड़ती है? किसी भी पद के लिये योग्य व्यक्ति का चुनाव उसकी शिक्षा के आधार पर होना चाहिये ना कि उसकी जाति के आधार पर।वैसे आरक्षण एक बड़ा मुदृदा है जिसके लिये अलग से चर्चा की आवश्यकता है।फिलहाल तो केवल यही कहा जा सकता है कि समाज में हुऐ किसी भी हादसे को किसी विशेष जाति से जोड़कर ना प्रस्तुत किया जाये क्योंकि ये भेदभाव को समाप्त करने के बजाए उसे बढ़ावा देते हैं और समाज में जातिवाद की खाई को दिनों दिन गहरा कर रहे हैं।
कोई आपको इसलिये नौकरी देता है क्योकि आप दलित,अल्पसंख्यक या मुसलमान हैं वहीं दूसरी ओर कोई आपको इसी लिये नौकरी पर नहीं रखता क्योंकि आप अल्पसंख्यक हैं।ये कैसा गणित हुआ भला कि यदि बलात्कार यदि किसी दलित लड़की के साथ हुआ तो आन्दोलन हो गया,यह घटना पहले पन्ने की खबर बन गयी और यदि किसी सामान्य जाति की लड़की के साथ हुआ तो रोजमर्रा की खबरों में शामिल हो गयी।क्या दोनों की पीड़ा में अंतर है?दोनों ही समान दौर से गुजर रही हैं।उनकी पीड़ा को कोई तीसरा नहीं समझ सकता है।पर इस तरह की घटनाओं को आग देकर अपने स्वार्थ की रोटी सेकनें वाले कुछ स्वघोषित बुद्धिजीवी वर्ग की कमी नहीं है इस दुनिया में।जो कि स्वयं को धर्म का ठेकेदार की उपाधि देते हैं।यही वह लोग हैं जो कि समाज को हमेशा से दो भागों मे बॉटते आये हैं।क्योकि इन्ही सब से इनकी रोजी रोटी का जुगाड़ होता है।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है।यह गाथा तो हम वर्षों से गाते आ रहे हैं परन्तु इसी धर्मनिरपेक्षता जैसे सुन्दर शब्द ने समाज को दो भागों में विभाजित कर दिया है।हमारा देश का संविधान कहता है कि देश के सभी नागरिक एक समान हैं पर दूसरी ओर समाज में हादसों को वर्ग विशेष से जोड़ दिया जाता है।किसी जाति विशेष को हादसे के साथ बार –बार उनकी जाति याद दिलाया जाना उन्हें यह एहसास दिलाता है कि उनके साथ यह हादसा उनकी जाति के कारण हुआ और यह भी कि वह औरों से अलग हैं।
दूसरा बड़ा मुदृदा जो भारत के धर्मनिरपेक्षता गाथा की धज्जियॉ उड़ा रहा है वह है-आरक्षण की मांग।यह एक ऐसी चिंगारी है जो किसी भी समाज मे साम्प्रादायिकता फैलाने के लिये काफी है।यदि देश के सभी नागरिक समान हैं तो नौकरी पाने के लिये जाति प्रमाण-पत्र की आवश्यकता क्यों पड़ती है? किसी भी पद के लिये योग्य व्यक्ति का चुनाव उसकी शिक्षा के आधार पर होना चाहिये ना कि उसकी जाति के आधार पर।वैसे आरक्षण एक बड़ा मुदृदा है जिसके लिये अलग से चर्चा की आवश्यकता है।फिलहाल तो केवल यही कहा जा सकता है कि समाज में हुऐ किसी भी हादसे को किसी विशेष जाति से जोड़कर ना प्रस्तुत किया जाये क्योंकि ये भेदभाव को समाप्त करने के बजाए उसे बढ़ावा देते हैं और समाज में जातिवाद की खाई को दिनों दिन गहरा कर रहे हैं।