शुक्रवार, 2 नवंबर 2007

‘अच्‍छा तो हम चलते हैं’

गाने की पंक्तियां तो बहुत पुराने गाने की हैं पर आजकल के प्रेमियों पर सटीक बैठती हैं।इस बदलते समाज ने प्रेम की परिभाषा को भी बदल के रख दिया है।आजकल प्रेम की उम्र लम्‍बी नहीं होती है। जब तक विचार मिले,तब तक ठीक है पर जहां विचारों में जरा भी मतभेद हुआ वहीं से प्रेमी एक दूसरे को कहते हैं-अच्‍छा तो हम चलते हैं।और ‘फिर कब मिलोगे’ वाली पंक्तियों की आवश्‍यकता यहां कभी नहीं पड़ती क्‍योंकि जल्‍द ही उन्‍हें कोई और मिल जाता है।
ये प्रेम की नयी व्‍याख्‍या है जो प्रेमियों ने अपनी सहूलियत के लिये स्‍वयं निर्मित की है।पर इन दोनों परिभाषाओं में वही अंतर है जो कागज के फूलों और असली फूलों में होता है।प्रेम की भीनी उस सुगन्‍ध का जो कभी प्रेमियों के ह्दय सें आती थी।
आजकल की भागती –दौड़ती जिन्‍दगी में प्रेम भी केवल टाइम-पास का जरिया बन गया है।युवा प्रेमी मिलते हैं साथ घूमते हैं खाते-पीते हैं पर विवाह का इरादा न‍हीं रखते हैं।और ना ही एक-दूसरे की जिन्‍दगी में हस्‍तक्षेप करते हैं।इनमें से कई लोग ऐसे भी हैं जो कि बॉयफ्रेन्‍ड या गर्लफ्रेन्‍ड केवल इसलिये बनाते हैं क्‍योकिं ये आजकल का फैशन है और उनके स्‍मार्ट होने का प्रमाण है।100 मे से 70 लड़कियां प्रेम को केवल समय बिताने का जरिया मानती हैं और अपने माता-पिता की पसन्‍द से शादी करना पसन्‍द करती हैं।दूसरी तरफ ज्‍यादातर लड़कों की सोच भी यही है।
विशेष रूप से कालेज,स्‍कूल आदि में आजकल प्रेम की इसी नयी परिभाषा को जिसे अंग्रेजी में ‘वन नाइट स्‍टैन्‍ड लव’ भी कहा जाता है को तव्‍वजो दे रहे हैं।कारण है कि जब हमारी पूरी संस्‍‍कृति पश्चिमी सभ्‍यता में रंगती जा रही है तो भला प्रेम इसके रंग में सराबोर होने से कैसे बच पाऐगा।पर अंत में केवल यही कहना चाहूंगी कि इस तरह के प्रेम में अंत में अकेलेपन और मानसिक कुंठा के सिवा कुछ हासिल नहीं होगा।और ना ही इस तरह का रिवाज चिरस्‍थाई होगा।

13 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

आज यही सब कुछ है...लेकिन कभि तो बदलेगा...बदल ता भी रहा है।

गौरव सोलंकी ने कहा…

शायद दुनिया पहले भी ऐसी थी, अब भी ऐसी है। बस अब सब कुछ बाहर दिखने लगा है।
हाँ, सच्चा प्रेम अब भी है, बस उसका मिलना बहुत मुश्किल है।

विनोद पाराशर ने कहा…

प्रेम तभी स्थाई हो सकता हॆ,जब उसमें एक-दूसरे के प्रति समर्पण हो.सिर्फ समय पास करने के लिए किसी साथी की तलाश को तो प्रेम नहीं कहा जा सकता.आपने ठीक कहा,ऎसे लोगों के हाथ में निराशा ही आती हॆ.

Udan Tashtari ने कहा…

सत्य वचन....मात्र कुंठा ही हासिल होगी अंत में..एक टूटा बिखरा समाज..

Asha Joglekar ने कहा…

प्रेम स्थाय़ी भी हो तब भी अकेला पन हो सकता है ।
कई बार परिस्थितियाँ ऐसी हो जाती हैं ।
देखिये मेरी आजकी पोस्ट ।

sanjay patel ने कहा…

दीप्ती;
जाने क्या मैने कही
जाने क्या तूने सुनी
बात कुछ बन ही गई
ये गीत और सिचुएशन्स अप्रासंगिक होतीं जा रहीं हैं आजकल..आपने ठीक फ़रमाया कि प्रेम टाइमपास होता जा रहा है...होना तो ये चाहिये कि प्रेम एक निराकार ; निराभिमान और विदेह-स्वरूप बन ज़िन्दगी को एक रूहानी सुरभि दे...इस सारी बिगडैल स्थिति के लिये फ़िल्म,मीडिया और टीवी को भी ज़िम्मेदार ठहराना पड़ेगा.

neeraj bajpai ने कहा…

प्रेम एक दिमागी फितूर है। इसके सिवाय कुछ नहीं है। सदियों से जाने कितने लोग इसे खोजने की असफल कोशिश कर चुके हैं। जबकि, ये एक विशेष मन:स्थिति है। जो, समय, परिस्थितियों के अनुसार पल-पल बदल जाती है। ये भौतिक सच्चाई हमें मान लें तो, प्रेम की सही खोज पूर्ण हो जाएगी। शायद इसीलिए हम कहते हैं अच्छा तो हम चलते हैं।
bajpaineeraj@gmail.com

गौरव सोलंकी ने कहा…

नीरज जी, दिमागी फितूर वाली बात से मैं सहमत नहीं।

Unknown ने कहा…

wah wah deepti ji, me aapke vicharo se puri tarah sahmat hu. hamare culture me jab se western culture ne entry ki hai hum log apni sanskriti ko bhool chuke hai, yah ek vidmbna hai ki jinhone hume etne salo tak gulam bana ke rakkha hum unke hi culture ko use kar rahe hai, hamare desh me yese bahut hai jinhe apni rashtra bhasa hindi aati tak nahi.z

Unknown ने कहा…

दीप्ति जी मैंने आपके सभी लेख पड़े सच मैं सभी एक से बड़ के एक हैं - सबसे अच्छा लेख मेरे को भेदभाव रोकने के नाम पर बढता भेदभाव लगा ,,, और नैन ताल के बारे मैं भी पद कर आचा लगा ...दिल्ली की पब्लिक ट्रांसपोर्ट के बारे मैं भी जरूर लिखना ...
हैप्पी दीवाली

Unknown ने कहा…

दीप्ति जी मैंने आपके सभी लेख पड़े सच मैं सभी एक से बड़ के एक हैं - सबसे अच्छा लेख मेरे को भेदभाव रोकने के नाम पर बढता भेदभाव लगा ,,, और नैन ताल के बारे मैं भी पद कर आचा लगा ...दिल्ली की पब्लिक ट्रांसपोर्ट के बारे मैं भी जरूर लिखना ...
हैप्पी दीवाली

दीप्ति गरजोला ने कहा…

धन्‍यवाद दिव्‍या जी,
मेरे लेखों की सराहना करने के लिये धन्‍यवाद।आशा है कि आप आगे भी अपने विचारों से मुझे अवगत कराते रहेगीं।और आपके सुझाव पर ध्‍यान अवश्‍य दूंगी।

Unknown ने कहा…

deepti, aapne shi likha.......mae kuchh aur add karna chaunga....darsal PREM aur VASANA mae etana antar hai jitana kaanch aur kanchan mae...saccha prem sirf prem karna janta hai...vah samrpan janata hai....aur usk badale mae uska koi swarth nahi hota...shyad aaj es sach ko samjane ki sabse badi jarurat hai...deepti aap mujhse sahmat hai??