इस समय मंहगाई और क्रिकेट दोनों का ग्राफ हमारे देश में दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। जहां एक ओर मंहगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ के रख दी है वहीं दूसरी ओर आईपीएल का बुखार 104C से भी पार होने को बेकरार हो रहा है।
आप सोच रहे होगें कि मैं आईपीएल और मंहगाई की तुलना क्यों कर रही हूं। पर जिस तरह से एक ओर मेरे देश में क्रिकेट के नाम पर पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है वहीं दूसरी ओर एक आम आदमी इस बात से झूझ रहा है कि बाजार में अगर इस तरह से समान की कीमतें बढ़ती रहीं तो वह अगले महीने का राशन का खर्चा कैसे चला पाऐगा।
ये कहां का न्याय है कि जिस देश का आम आदमी मंहगाई से ग्रस्त हो उसी देश मे क्रिकेट खेलने वालों पर बिना सोचे समझे पैसे की बरसात की जा रही है।
दरअसल कुछ लोग अच्छी तरह से जानते हैं कि भारत मे लोग क्रिकेट के जनूनी हैं। यहां क्रिकेटरों को भगवान की तरह पूजा जाता है। तो ऐसे देश में इस खेल से पैसा बनाना कितना आसान है। यहां क्रिकेट को लोग अपनी भावनाओं से जोड़ कर देखते हैं और कुछ व्यापारी अपनी व्यापार कुशलता का फायदा उठा कर लोगों की भावनाओं को भी बेचने से नहीं चूकते। आईपीएल मे खेलने वाले हर खिलाड़ी पर लाखों करोड़ो की बोली लगी। कहां से आया इतना पैसा ? और अगर देश में इतना पैसा है तो क्यो हम मंहगाई बढ़ने का रोना रो रहे हैं।
क्रिकेट भी अब केवल खेल नहीं रह गया है। ये पैसा कमाने का सबसे सरल जरिया बन गया है। कभी मैच फिक्सिंग से और कभी खिलाडियों के चयन से। क्रिकेट की लोकप्रियता को जितना भुनाया जा सकता है,भुनाया जा रहा है।
मंगलवार, 6 मई 2008
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8 टिप्पणियां:
विचारणीय.
आजकल काफी कम लिखा जा रहा है?
शुभकामनाऐं.
Dear Deepti,
I agree with you but who to blame..... "we the people" every day we are gng home and watchng IPL why not we should stop wtching ? look at the public who go and watch match at the ground!
Its all demand game.... so as the prices of rice and other food product are increasing coz of their increasing demand same goes with IPL....
Take care
नमस्कार सर,
सबसे पहले तो धन्यवाद देना चाहूंगी कि आपने मेरे लेख को अपने विचार दिये। सही कहा आपने कि आजकल कुछ कम लिखा जा रहा है। कुछ भौतिक जरूरतों की पूर्ति करने की कोशिश में अपने मन के विचारों कों विराम देना आवश्यक हो गया था। इसलिये अपने ब्लाग की ओर कम ध्यान दे पा रही हूं।
नमस्कार भास्कर जी,
सबसे पहले तो मैं तहेदिल से ध्न्यवाद देना चाहूंगी कि आपने अपने बहूमूल्य समय में से मेरे लेख के लिये वक्त निकाला। पर मैं आपकी बात से पूरी तरह से सहमत नहीं हूं। मैं मानती हूं कि कुछ हद तक हमारा समाज स्वयं दोषी है कि वह सब कुछ जानते हुऐ भी स्वंय को क्रिकेट देखने से रोक नहीं पा रहा है । परन्तु आप यह भी तो देखिये कि जिस तरह से आईपीएल का हव्वा बनाया जा रहा है उसे देखते हुऐ कोई भी क्रिकेट प्रेमी उसकी ओर आर्कषित हुऐ बिना कैसे रह सकता है।और यदि दिन भर सारे टीवी चैनलों पर आईपीएल की ही चर्चा रहेगी तो आम आदमी कैसे इससे खुद को बचा सकता है।
dear dipti,
aapne dono high graph wale topic par likha hai, achachha hai,
jo dono hi hamare control se pare hai, ek to business hai doora bhi business hi hai, kyonki dono me sirf business man kohi fayada hai, nuksaan sirf public ka ho rahah hai chahe wo ipl ho ya mahngai, paisa sirf public ki jeb se ja raha hai, bye take care
dear dipti i agree wiyh u.....kya tume mujhe pachana ....rudrapur me c m mishra ji ke yaha chemistry padi thi....i m very glad to find u...
hello,
oh yeh i remember.......u r Amit Mishra.good to see u again here.where r u now a days? aur apne blog par apna comment kiya achcha laga.
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