गृहमंत्री शिवराज पाटिल का यह बयान चौंकाने वाला है कि अगर हम पाकिस्तान से सरबजीत के लिये माफी की मांग करते हैं तो भारत में अफजल गुरू के लिये कैसे फांसी सजा तय कर सकते हैं?
ये दोनो ही मामले बिल्कुल अलग-अलग हैं, जिनकी तुलना करके गृहमंत्री स्वयं एक नये विवाद को तूल देने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा बयान देकर वह राष्ट्र विरोधी तत्वों तक एक गलत संदेश पंहुचा रहे हैं।
ऐसा बयान देकर गृहमंत्री कानून की अहमियत को भी कम कर रहे हैं। अगर हम आपस में ही एक दूसरे के लिये सजा और माफी तय कर लेगें तो देश में संविधान और कानून बनाने की आवश्यकता ही क्या है? और किसी भी जुर्मों की आपस में तुलना करना बिल्कुल गलत है क्योकिं हर देश के नियम कायदे और कानून अलग होते हैं। शिवराज पाटिल का यह बयान सुनकर मुझे वह घटना याद आ गयी जब आंतकवादियों ने हमारा पूरा हवाईजहाज हाईजैक कर लिया था और बदले मे हिन्दुस्तान की जेल मे बंद अपने साथियों की रिहाई की मांग की थी। आज भी स्थिति कुछ ऐसी ही दिखाई दे रही है कि अगर तुम हमें माफी दोगे तो ही हम तुम्हें माफ करेगें। जरा सोचिये कि भारत की न्याय पालिका ने अगर अफजल को माफ कर दिया तो भारतीय संसद जो कि एक मंदिर की तरह है, की प्रतिष्ठा को कितनी ठेस पहुंचेगी। और साथ ही आतंकवादियों के हौसले और भी बुलंद हो जाऐगें। अगली बार वह हिन्दुस्तान के खिलाफ अपनी योजना बनाते समय एक बार भी नहीं सोचेगें। क्योंकि उनके लिये एक सरबजीत फिर से मिल जायेगा। अगर यही स्थिति रही तो वह दिन दूर नहीं जब भारत और पाकिस्तान में आपस मे माफी के बदले माफी और सजा के बदले का नया कानून लागू हो जाऐगा।
गुरुवार, 22 मई 2008
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13 टिप्पणियां:
hmmm
this article really great, you touched the basic thing of our constitution.
The law and order of every country are different and these are depend on many things so how one can equate two different things. Apart from this the intensity of the crime made by these two are also different.
good dear keep it up
दीप्तिजी आपने अत्यंत ज्वलंत प्रश्न उठाया है। आज विचार इस बात पर करने की आवश्यकता है कि भारत का गृहमंत्री ऐसे बयान क्यों दे रहा है। सम्भवतः इसलिये कि उन्हें पता है कि इस्लामी आतंकवाद के मूल में छुपी प्रेरणा, विचारधारा और इसके पोषकों पर न तो देश में कोई चर्चा करना चाहता है और न इन घटनाओं के गहरे विमर्श में जाना चाह्ता है। तभी तो जयपुर में हुई त्रासदी से अधिक बडी त्रासदी हमारे समाचार माध्यमों को नोएडा में आरुषि की हत्या लग रही है। वास्तव में हम वास्तविकता से भाग रहे हैं और जिस चीज से व्यक्ति या समाज भागता है वह उसका पीछा करती है। आज इस्लामी आतंकवाद की वास्तविकता हमारा पीछा कर रही है। मैं इस बात के लिये आपको धन्यवाद देता हूँ कि आपने एक सही देशभक्त युवा का कर्तव्य निभाया है। मुझे अपेक्षा है कि आप आगे भी ऐसी ही संवेदनशीलता का परिचय देती रहेंगी।
दिप्ति सही लिखा है आपने। हमारे देश के नेता अगर ऐसे हैं तो हमें देश के दुश्मनों की जरुरत नहीं है। अपना स्वाभिमान बेच के खा चुके हैं हमारे नेता । और जो कोई अच्छा करना भी चाहता है उसे आगे आने ही नहीं दिया जाता है।
इस्लामी आतंकवाद कुछ नहीं होता हैं। आतंकवादी का कोई धरम नहीं हैं । गरीबी ही सबसे बड़ा आतंक है । देश के नेताओं ने क्या कभी एक जुट होकर इसपर सोचने की कोशिश की है । नेताओं से बड़ा कोई ...हो सकता है ।
इस्लामी आतंकवाद कुछ नहीं होता हैं। आतंकवादी का कोई धरम नहीं हैं । गरीबी ही सबसे बड़ा आतंक है । देश के नेताओं ने क्या कभी एक जुट होकर इसपर सोचने की कोशिश की है । नेताओं से बड़ा कोई ...हो सकता है ।
दीप्ति जी हिन्दी ने अपना सम्मान नहीं खोया है आज देखिये हिन्दी में कितना काम हो रहा है ब्लाग को ही ले लिजिये लगभग 3000 है देश-विदेश में खूब हिन्दी पढ़ रहे । अमेरिका में कई स्कूल हिन्दी मीडियम के है ।विदेशों में काफी काम हो रहा है । मेरा पूरा परिवार हिन्दी प्रेमी है । हिन्दी की नौकरी है उसी की खाते है ।
डा. फिरोज अहमद काश ऐसा होता कि आतंकवादी का कोई धर्म न होता? जहाँ तक आतंकवाद और गरीबी का सम्बन्ध है तो यह तर्क काफी पुराना हो गया है। हजारों उदाहरण हैं जो सिद्ध करते हैं कि कितने सम्पन्न मुसलमान जिहाद में लिप्त हैं। आज ऐसे नरमपन्थी मुसलमानों को आगे आने की आवश्यता है जो शरियत आधारित विश्व व्यवस्था के निर्माण के लिये संचालित इस्लामवादी आन्दोलन का विरोध करें।
बढ़िया लेख. इस्लामिक आतंकवाद पूरी दुनिया को शिकंजे में लिए हुए है. विकसित पश्चिमी देश अपने स्तर पर मुँहतोड़ जवाब दे रहे हैं मगर भारत जैसे नपुंसक बाहुल्य देश में इसका खुलकर प्रतिवाद करने वाले कम ही मिलेंगे. एक कारण यह भी है कि यहाँ मीडिया पर वामपंथी विचारक हावी हैं और इस्लामिक आतंकवादी और कम्युनिस्ट हमजोली हैं.
ओफ्फोह!
शिवराज पाटिल का मतलब यही है कि जो हमारे लिए अफजल है, वही पाकिस्तान के लिए सरबजीत है। हम इस तथ्य को नहीं नकार सकते कि रॉ के भी पाकिस्तान में बहुत जासूस हैं।
अभी कुछ दिन पहले तहलका में एक खबर पढ़ी थी कि लालकिले पर 2000 में हुए हमले के आरोप में जिसे आतंकवादी बताकर सजा दे दी गई है, वह पाकिस्तानी नागरिक भी पाकिस्तान में रॉ का जासूस था।
देशभक्त होना अच्छी बात है, मगर निरपेक्ष होकर सोचें तो आप ही बताएं कि हम मानवता के आधार पर ये दावा कैसे कर सकते हैं कि सरबजीत को छोड़ दिया जाए। कोई भी देश विदेशी गुप्तचरों को यही सजा देगा। आप मीडिया में हैं, और पहलुओं से भी सोचिए।
बात तो आपकी सही है
किंतु हम किसी देश के कानून में
दखल देकर अपने लिये ही गड्ढा
खोद रहे हैं । इन दोनों को इनकी
अपनी अपनी् सरकारों ने कूटनीतिक
बिसात का मोहरा बना रखा है ।
मैं एक आलेख इस पर दे चूका हूँ,
हालाँकि मैं मीडिया से नहीं हूँ । http://c2amar.blogspot.com/2008/05/blog-post.html
बात तो आपकी सही है
किंतु हम किसी देश के कानून में
दखल देकर अपने लिये ही गड्ढा
खोद रहे हैं । इन दोनों को इनकी
अपनी अपनी् सरकारों ने कूटनीतिक
बिसात का मोहरा बना रखा है ।
मैं एक आलेख इस पर दे चूका हूँ,
हालाँकि मैं मीडिया से नहीं हूँ । http://c2amar.blogspot.com/2008/05/blog-post.html
Dear Deepti,
At least we think alike on this topic...... grt work keep it up
....BJ
फिरोज अहमद जी ,
सबसे पहले तो धन्यवाद कि आपने हिन्दी को इतना सम्मान देकर अपने सच्चे भारतीय होने का परिचय दिया है। रही बात इस्लामिक आतंकवाद की तो ये सच है कि गरीबी एक मुद्दा जरूर हो सकता है आंतकवाद को बढावा देने का परन्तु ये भी उतना ही सच है कि आजकल आतंवाद को धर्म और जेहाद के नाम पर बढावा दिया जा रहा है और इसमें शामिल होने वाले ज्यादातर युवक पढेलिखे और आर्थिक रूप से सक्षम हैं। अभी हाल में ही एक फिल्म आयी थी'खुदा के लिये', जिसमें दिखाया गया है कि किस तरह आतंकवाद के सरगना धार्मिक ग्रंथों में लिखी बातों की गलत ढंग से व्याख्या करके एक पढे लिखे युवक को आंतकवाद के लिये प्रेरित करता है और उसमें सफल भी होता है। तो गरीबी और अशिक्षा जैसे मुद्दों को तूल देना गलत होगा।
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