रविवार की शाम मित्रों के साथ इंडिया गेट जाने का कार्यक्रम बना। सो शाम को इंडिया गेट के सामने बस से उतरकर हम तीनों ने इंडिया गेट की राह ली। रविवार यानि कि छुट्टी का दिन होने से यहां काफी भीड़-भाड़ का माहौल था। लोग अपने- अपने परिवारों के साथ इस मनोरम स्थल का आनन्द उठाने आये थे। पर उसी के साथ यहां कूड़े के ढ़ेर उन तमाम लोगों की अपने इस देश की राष्ट्रीय धरोहर के प्रति स्नेह को भी दर्शा रहे थे। ये गन्दगी इस बात का सबूत थी कि दिल्ली वाले इंडिया गेट को केवल एक पर्यटन स्थल मानते हैं।
पर जिस घटना ने मुझे झकझोर के रख दिया, वह साफ-सफाई की बात से भी ऊपर थी। हम तीनों भी थोड़ी देर वहां मैदान मे कुछ पल बिताने के लिये बैठे। हमारे बैठने के पांच या दस मिनट बाद ही वहां अचानक से एक 5-6 वर्षीय बालक एक तश्तरी लेकर खड़ा हो गया। हमारी तरफ देखकर बोला, चाय या कांफी लेगें आप? हमारे पूछने पर उसने बताया कि वह वहीं सामने एक चाय के ठेले पर काम करता है। और ऐसे ही ग्राहकों से आर्डर लेता और पहुंचाता है। हमने पूछा कि यह दुकान उसके पिता की है? तो उसने बताया कि वह यहां ध्याड़ी पर काम करता है।
यह देखकर हम लोग सन्न रह गये कि जहां दिल्ली मे सरकार बाल मजदूरी को रोकने के लिये तरह- तरह के कानून बना रही है, वही दूसरी ओर राष्ट्रपति भवन के ठीक सामने देश के कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ायी जा रही हैं। और वह भी इंडिया गेट पर, जहां चौबीसों घण्टे कड़ी चौकसी रहती है।
हमसे आर्डर के लिये पूछने वाला वह बच्चा अकेला नही था। उसके जैसे वहां अनगिनत और बच्चे मौजूद थे। जो किसी ना किसी दुकान पर काम कर रहे थे। हमारे ज्यादातर सवालों वह बच्चा मौन साधा रहा। बहुत संभव है कि इसके लिये उसके मालिक ने सख्ती से मना किया हो।
क्या हमारी कानून व्यवस्था क्या इतनी अन्धी और लाचार हो गयी है कि उसे अपने ही सामने बाल श्रम कर रहे बच्चे नहीं दिख पा रहे हैं। वहां दिन रात घूमती पुलिस को क्या यह नहीं पता है कि हमारे देश मे बाल श्रम गैरकानूनी है? या फिर ऐसा तो नहीं कि हमारे देश के रक्षक भी इसमें शामिल हैं और ये सब कानून केवल दिखावे के लिये बनाऐ गये हैं। सच्चाई चाहे जो भी हो परन्तु अगर दिल्ली सरकार ऐसे ही अपनी आंखों देखी मक्खी निगलती रही तो देश की कानून व्यवस्था पर से आम जनता का भरोसा उठ जायेगा।A
मंगलवार, 1 अप्रैल 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
5 टिप्पणियां:
सरकार तो जो करे न करे तुमने क्या किया? तुम्हें क्या लगता है ऐसी वैचारिक पोस्ट लिख देने से बालमजदूरी समाप्त हो जाएगी. हर बात के लिए सरकार को कोंसकर आराम से अपने बिस्तर में फुंफकार कर सोनेवाले लोग ज्यादा गैरजिम्मेदार लोग होते हैं.
बालमजूरी न करे वह बच्चा तो भूखों मर जाएगा. तब क्या लिखोगी कि भूखों मरने से तो अच्छा था कि कुछ काम कर लेता?
मैडम, हर समस्या का हल कानून नहीं है। ग्राहक जिस कीमत पर वस्तु और सेवाएं चाहता है उन्हें प्रदान करना सस्ती मजदूरी पर ही संभव है। यह सस्ता मजदूर केवल बाल मजदूर ही हो सकता है। दूसरी और बाल मजदूरी का पूरी तरह उन्मूलन तभी संभव है जब कि हम देश में विकास को इस तरह वितरित कर दें कि हर परिवार कम से कम चौदह वर्ष तक की उम्र के बच्चों की पढ़ाई व देखभाल का खर्च उठाने में सक्षम हो जाए। जो बच्चे बिना अभिभावक के हों उन की जिम्मेदारी सरकार ले।
हमारी व्यवस्था को इस स्तर तक पहुँचाने का कोई प्रयास नजर नहीं आ रहा है। तब केवल कानून बनाने से नतीजा सामने आने वाला नहीं है।
आप से एक निवेदन कि आप टिप्पणी में से वर्ड वेरीफिकेशन हटा दें इस से टिप्पणी करने में समय लगता है जो पाठक को कतई पसंद नहीं। वह टिप्पणी किए बिना ही आगे बढ़ जाता है।
अरे अब हम कया कहे, जो बात हम ने कहनी थी,वही बात संजय जी ओर दिनेश जी ने कह दी,जेसे कुछ दिन पहले कही पढा था दिल्ली के किसी इलाके मे रिकक्षा चलने बन्द होगें, मे भी नही चाहता आदमी आदमी को खींचे, लेकिन इछ आगे भी सोचो उन लोगो का कया होगा जो रिकक्षा चला कर परिवार का पेट भरते हे,कया सरकार ने उन का रिकक्षा छीन कर उन्हे न्या काम दिया ?
main kya bolun, main or merea desh, merea kanun or mere desh ki janata sab sote hai chaddar tankar, hum sirf dekte hai karte kuchh nahin hai, jaise apne likha waise hi maine likha or waisa hi sanjay ne likha, dinesh ne likha or raj ne likha, hum sab log likh hi sakte hai kyonki likne se kisika kuchh nahi bigdta hai, kyonki apne dekha humne padha lekin kisi nebhi kuchh nahi kiya, sabko pata hai ki iski shikayat kahan ho sakti hai, hamri sarkar jar kisi ka pet har samay nahin bhar sakti hai, yeh jindgi hai isme sangharsh karna padta hai baki or un bachachon ke pas koi option bhi to nahin, Madam,
Rajender Yadav(rajallb@gmail.com)from amit's account
UMESH MISHRA(09314558282)
Madam ek sawal aap se : aap Bhart desh ki ak nagrirepoter hai aap ne kya kiya aap ne kuch kiya aap sishe ke samne khade hokar apne aine se puche ge to pata chale ga ki aap ne kuch nahi kiya. DOSH KARNE VALE SE JYADA DOSH DEKHNE YA SAHNE WALA HOTA HAI TO AAP HI SOCHE AAP KITNI UTTARDAYE HAI, KYA AAP DAND KI BHAGIDAR NAHI HAI AAP NE KYO NAHI ROKA ES APRADH KO KYO KHAMOSH RAHI KYA LIKHNE KE BAD CAMMENTS PADNE KE LIYE YA SIKAYT KE LIYE YA ENJOY KE LIYE
एक टिप्पणी भेजें