रविवार, 30 मार्च 2008

मुंबई सिर्फ मुंबई वालों की जागीर ?

बचपन में एक बहुत महशूर पंक्ति सुनी थी कि मुंबई सपनों का शहर है। यहां लोग अपने सपनों को हकीकत में बदलने आते हैं। पर पिछले कुछ समय से इस शहर ने उत्‍तर भारतीय राज्‍यों के लोगों के साथ जो र्दुव्‍यवहार किया है, उसे देखते हुऐ तो यह लगता है कि अब गैर मुंबईवासियों के लिये सिर्फ डरावने सपनों का शहर बनकर रह गया है।

पिछले कुछ समय से महाराष्‍ट्र में उत्‍तर भारतीयों पर हमलों का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। बीते शनिवार को ही सेंट्रल मुंबई में कुछ लोगों ने पांच टैक्सियों पर हमला करके उन्‍हें शतिग्रस्‍त कर दिया। बताया जा रहा है कि कुछ मोटर साइकिल सवारों ने पहले टैक्‍सी मालिकों से पूछा कि वे कहां से ताल्‍लुक रखते हैं। उनके यह बताये जाने पर कि वे उत्‍तर भारत से ताल्‍लुक रखते हैं उनकी टैक्सियों पर हमला करके उन्‍हें चकनाचूर कर दिया गया।
मुझे समझ नहीं आता कि अचानक से मुंबई क्षेत्रवाद क्‍यों करने लगी? इतने सालों से बाहर से लोग यहां आकर अपनी रोजी-रोटी का उपाय कर रहे हैं। पर अचानक से मुंबईवालों का ऐसा क्‍यों लगने लगा कि मुंबई सिर्फ उनकी जागीर है। क्‍या मुंबई को इस मुकाम तक पहुंचाने मे सिर्फ उनका का ही एकमात्र योगदान है?

सबसे महत्‍वपूर्ण बात तो यह है कि कोई भी व्‍यक्ति अगर अपना घर छोड़कर मीलों दूर रोजी-रोटी का साधन ढ़ूंढने आता है तो उसके पीछे उसकी मर्जी से ज्‍यादा मजबूरी होती है। ताकि हजारों मील दूर बैठा उनका परिवार चैन की रोटी खा सके। क्‍या उनके मन में अपने परिवार से मिलने की कसक नहीं उठती होगी। एक तो परिवार से दूरी का गम और उस पर दूसरे राज्‍य में भी परायों सा व्‍यवहार। मुंबई इतनी कठोर कैसे हो सकती है? बल्कि उसे तो चाहिये कि वह दूसरे राज्‍यों से आने वाले लोगों को अपनेपन का अहसास दिलाये ताकि उन्‍हें कभी अपने घरों से दूर होने का एहसास ना हो। अगर सारे राज्‍य दूसरे राज्‍यों से आये लोगों को अपना दुश्‍मन समझकर उनके साथ र्दुव्‍यवहार करने लगे तो देश की अखण्‍डता चूर-चूर हो जायेगी। और इसके जिम्‍मेदार होगें हम स्‍वयं,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

9 टिप्‍पणियां:

Rajesh Roshan ने कहा…

कुर्सी के दावेदार बढ़ गए हैं

PD ने कहा…

एक और पंजाब की तैयारी..

राज भाटिय़ा ने कहा…

इन बदमाशो कॊ हमारी सरकार रोकती क्यो नही,

Anita kumar ने कहा…

बम्बई बम्बई कहां रह गयी वो तो मुम्बई बन गयी और भारत भी भारत कहां रह गया ढहती दिवार बन गया जिसे स्वार्थी राजनीतिक्षों की दीमक खा गयी।
हर युग में संघर्ष करना पड़ता है तुम्हारी पीढ़ी को एक बार फ़िर एक और आजादी की लड़ाई लड़नी होगी।

बिक्रम प्रताप सिंह ने कहा…

आपने अपने आलेख में अपराध का जिक्र किया है लेकिन असली अपराधियों का नहीं. मुम्बई क्षेत्रवाद नही कर रही है चंद लोग ऐसा कर रहे हैं. और जब बचपन में आपने सुना था की मुम्बई सपनो की नगरी है तब भी इन अपराधियों के खून के रिश्तेदार दक्षिण भारतीयों के साथ वैसा ही कर रहे थे जैसा आज उत्तर भारतीयों के साथ हो रहा है. ये भी स्मृति में हमेशा रखें कि इन टुच्चे लोगों कि साजिश से हमारे देश कि अखंडता भंग नही होगी.

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

दीप्ति जी। यह इन नए आतंकवादियों को दिखाया गया अच्छा सपना है या किराए पर काम करने वाले लोग हैं। सरकार को इन से निपटना होगा। दूसरे राजनैतिक दलों और स्थानीय जनसंगठनों को भी मशक्कत करनी होगी। जनता वोट से इस का जवाब दे तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।

Udan Tashtari ने कहा…

द्वेष की ऐसी चिंगारी भड़काई है इन कुर्सी के दीवानों ने कि बुझते बुझते ही बुझेगी. हद है!!

बेनामी ने कहा…

सही लिखा है आपने "अगर सारे राज्‍य दूसरे राज्‍यों से आये लोगों को अपना दुश्‍मन समझकर उनके साथ र्दुव्‍यवहार करने लगे तो देश की अखण्‍डता चूर-चूर हो जायेगी।" कुछ समय पूर्व एक लेख 'सूटर' नामक ब्लॉग में छपा था अगर न देख पाए हों तो लिंक भेज रहा हूँ - http://suitur.blogspot.com/2008/02/1916.html

राजीव जैन ने कहा…

आपकी बात से पूरी तरह सहमत। एक बात और कि अगर मुंबई वाले जिस तरह कर रहे हैं अगर ऐसा विदेश में बसे भारतीयों के साथ होने लगगेगा तो क्‍या होगा। हम कैसे कहेंगे सिलिकॉन वैली और नासा में हमारे लोग हैं। उन लोगों के परिवारों का क्‍या होगा। इसलिए हमें देशभक्ति करनी चाहिए न कि राज्‍यभक्ति या “राजभक्ति”।
वैसे मैंने भी इसी विषय से संबंधित एक ब्‍लॉग लिखा था, आप चाहें तो पढ सकती हैं।
http://shuruwat.blogspot.com/2008/02/blog-post_05.html