गुरुवार, 1 नवंबर 2007

नया पीढ़ी का नया भारत

खून नया है,जोश भी और विचार भी नये हैं।अगर वो डिस्‍को में शाम गुजारते हैं तो मंदिर जाना भी नहीं भूलते।अगर वो वैलेन्‍टाइन डे को पूरे जोश-खरोश के साथ मनाते हैं तो नवरात्रि में भी उनका उत्‍साह देखते ही बनता है।अगर इण्‍टरनेट पर चैटिंग करने का शौक रखते हैं तो अपनी पढ़ाई के लिये भी उसी नेट का प्रयोग करना बखूबी जानते हैं।अगर वो टी वी पर म्‍यूजिक चैनल और र्स्‍पोटस चैनल के दीवाने हैं तो न्‍यूज चैनल भी उनके लिये उतना ही महत्‍वपूर्ण है।

इनसे मिलिये ये हैं-भारत की नयी पीढ़ी।जो जोश के साथ होश संभालना भी बखूबी जानती है।वैसे देखा जाये तो आज का युवा अपेक्षाकृत ज्‍यादा जिम्‍मेदार है।वह अपने दोस्‍तो के साथ घूमने भी जाता है,फिल्‍में भी देखता है ,पर अपने लक्ष्‍य को लेकर भी उतना ही सजग है।वह जानता है कि उसे जिन्‍दगी में क्‍या करना है और वहां तक पहुंचने का रास्‍ता भी जानता है।
वह जितना आदर अपने माता पिता को देता है ,उतना ही सम्‍मान अपने देश का भी करता है।वह देश की राजनीति की भी समझ रखता है और अपने मत का प्रयोग करना भी जानता है।वह केवल अपने अधिकारो की जानकारी नहीं रखता बल्कि अपने र्कत्‍वयों का पालन करना भी जानता है।
वह देश के प्रति अपनी जिम्‍मेदारियों से अच्‍छी तरह वाकिफ है।वह अपने देश के लिये बहुत कुछ करना चाहता है।और वह कर भी रहा है।वह अपने देश के संविधान की इज्जत करता है और उन भरोसा भी करता है।पर युवा वर्ग अपने देश की सरकार से कुछ मुद्दों पर भरोसा चा‍हता है।जैसे-
-नौकरी या रोजगार का भरोसा
-लड़कियों के सड़क पर निर्भय होकर निकलने का भरोसा
-साम्‍प्रदायिकता के समाप्‍त होने का भरोसा
और सबसे बड़ी बात यह है कि वह चाहते हैं कि देश की पुरानी पीढी उन पर भरोसा करे।और शायद यह जरूरी भी है।क्‍योंकि आज की युवा पीढ़ी देश की तरक्‍‍‍की को उस मुकाम पर पहुंचा सकती है जहां आज विश्‍व के कई विकसित देश खड़े हैं।बशर्ते देश का अनुभवी वर्ग उनके साथ कंधा मिलाकर खड़ा हो।

18 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बढिया लिखा है लेकिन युवा भारत की पूरी त्स्वीर नही लगती...और भी बहुत कुछ है...

Udan Tashtari ने कहा…

अच्छा चित्रण किया है आज के युवा वर्ग का और एकदम सही आव्हान. बधाई.

बेनामी ने कहा…

mil liye naye bharat se,mil kar bari khushi hui lekin kya ye yuva varg jaativaad nahi sampat karwana chehta.

अनूप शुक्ल ने कहा…

बढ़िया है। नयी पीढ़ी को बधाई! आप के माध्यम से।

Asha Joglekar ने कहा…

नयी पीढी का नया जोश देख कर अच्छा लगा ।
तुम ही भविष्य हो मेरे भारत विशाल के ।

Batangad ने कहा…

'वह जितना आदर अपने माता पिता को देता है ,उतना ही सम्‍मान अपने देश का भी करता है।वह देश की राजनीति की भी समझ रखता है और अपने मत का प्रयोग करना भी जानता है।वह केवल अपने अधिकारो की जानकारी नहीं रखता बल्कि अपने र्कत्‍वयों का पालन करना भी जानता है।'

ये बात कुछ हजम नहीं हुई।
और अगर सही है तो, भरोसा मांगने की जरूरत क्यों है। नौकरी की, लड़कियों के निर्भय होकर घूमने की और सांप्रदायिकता समाप्त होने की।

Sajeev ने कहा…

bahut badhia likha hai

aarsee ने कहा…

आप सही कह रही हैं क्या?
मुझे शायद अपने दोस्तों पर फिर से गौर करना पड़ेगा।
वैसे अगर आपको यही नज़र आता है तो बहुत बड़ी नज़र है आपकी।

दीप्ति गरजोला ने कहा…

हर्षवर्धन जी ,
इसमे बात हजम ना होने वाली तो कोई बात नहीं है।आज का युवा अपने जिम्‍मेदारियों को जानता है और अपने अधिकारों को भी।पर अपने देश की सरकार से केवल युवा वर्ग के लिये कुछ सुरक्षा ही तो मांग रहा है।ताकि वह निर्भय हो कर अपने अधिकारों का प्रयोग कर सके।

दीप्ति गरजोला ने कहा…

प्रभाकर जी ,
सच देखने के लिये नजर बड़ी करने की नही बल्कि नजर तेज करने की आवश्‍यकता होती है।और आप भी तो युवा हैं।क्‍या आपको स्‍वयं पर भरोसा नहीं जो आपको अपने मित्रों से पुछने की आवश्‍यकता पड़ रही है।

नारद संदेश ने कहा…

अच्छा लिखा है। युवाओं की छवि का सकारात्मक चित्रण किया है।

बालकिशन ने कहा…

लिखा आपने बहत सही है. अच्छा चित्रण है. पर बालीजी से सहमत हूँ अधूरा चित्रण है.

Ramashankar ने कहा…

बहुत ही बढ़िया लिखा है. नयी पीढ़ी के नये भारत का शानदार चित्रण किया है. लेकिन अंत में उसे हल्का भी कर दिया .
यह मेरा अपना नजरिया है - रोजगार तो पर्याप्त है लेकिन योग्य उम्मीदवार नहीं मिल पाते. सड़क चलती लड़कियों से छेड़खानी या अन्य हरकतें करने वालों में ९० फीसदी युवा ही होता है. साम्प्रदायिकता समाप्त करने का भरोसा नहीं जिम्मेदारी ही युवा को अपने कंधो पर लेनी होगी. यदि जिम्मेदारी से काम करेगा तो भरोसा अपने आप बनेगा.
इस सबके बाद भी आपकी सोच काफी दूरदर्शी है.अच्छा लेखन है आपका.

Sagar Chand Nahar ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Sagar Chand Nahar ने कहा…

बढ़िया है पर अधूरा, अभी बहुत कुछ ऐसा है जो आप लिख सकती थी। खैर इस लेख की अगली कड़ी में उस कमी को पूरा करदें।
दीप्‍ती जी आपसे एक अनुरोध है आपके चिट्ठे का बेकग्राउंड रंग बहुत ही भड़कीला (Florescent) है जो कुछ देर तक स्क्रीन की तरफ देखने के बाद आँखो को बहुत तकलीफ देता है और आपके लेख पढ़ने में मुश्किल होती है।
॥दस्तक॥
गीतों की महफिल

Unknown ने कहा…

अच्छा लिखती हैं आप। पढ़कर खुशी हुई।

Divine India ने कहा…

थोड़ा और विस्तार होना चाहिए था… अभी कई ऐसे रंग हैं जो आ सकते थे… वैसे बहुत ही उम्दा बात रखी है…।

दीप्ति गरजोला ने कहा…

sagar jee aapke kahne k anusaar maine aapke blog ka background colour kuch halka kar diya hai.muje umeed hai ab aapko ise padhne me pareshaani nahi hogi.main koshish karungi ki agli baar main is series ko pura kar saku.