सबसे पहले तो मैं क्षमा प्रार्थी हूं कि इतने दिनों से ब्लाग की दुनिया से दूर रही। इतने दिनों से अपनी लेखनी पर विराम लगा कर मैं स्वयं को बहुत बंधा हुआ महसूस कर रही थी। पर कुछ निजी कारणों से मैं अपने ब्लाग को कुछ नया नहीं दे पा रही थी। इसी बीच आशुतोष गोवारिकर की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘जोधा-अकबर’ देखने का मौका मिला। काफी दिनों बाद किसी फिल्म में मुझे अपने इतिहास को करीब से जानने का मौका मिला। फिल्म को देखने के बाद महसूस किया कि हमारे भारत का इतिहास कितना गहरा है। मन किया फिर से अपने इतिहास के पन्नों को टटोल कर देखा जाये।
यह फिल्म रिलीज से पहले से ही अपनी लागत और कहानी को लेकर चर्चा का विषय रही। परन्तु फिल्म को देखकर इसमें आयी लागत का अनुमान लगाना सरल है। पर सबसे मुख्य और आवश्यक वस्तु फिल्म की कहानी रही। सबसे पहले तो मैँ आशुतोष की हिम्मत की सराहना करना चाहूंगी क्योंकि भारत जैसे बहुसामप्रदायिक देश में किसी ऐतिहासिक विषय पर फिल्म बनाना एक जोखिम भरा काम है। क्योंकि फिल्म की विषय वस्तु के साथ अगर जरा भी छेड़छाड़ हुई तो कुछ विशेष लोग जिन्होने समाज में धर्म और जाति का ठेका ले रखा है, सड़कों पर उतरकर विरोध प्रर्दशन करने में जरा भी देर नहीं लगाते।
परन्तु इतनी सावधानियों को बरतने के बावजूद भी राजस्थान के लोगों ने अकबर जोधा के रिश्ते को लेकर भ्रम पैदा किया। वहां के लोगों के अनुसार जोधा अकबर की पत्नी नहीं बहू थी। इस कारण उन्हें इस फिल्म से आपत्ति थी। पर सोचनीय बात यह है कि क्या आशुतोष ने इतनी बड़ी फिल्म का निर्माण करने से पहले इतनी जरूरी बात का ध्यान नहीं रखा होगा।
खैर, यह तो होना ही था। कोई भी बड़ी फिल्म बिना विवादों के घेरे से नहीं बच सकती। परन्तु यहां पर यह बताना भी बहुत जरूरी है कि फिल्म के जुड़े हर व्यक्ति ने अपना काम पूरी ईमानदारी से निभाया है। जोधा और अकबर के पहनाऐ गये आभूषणों और वेष भूषा का भी खासा ध्यान रखा गया है।
फिल्म का दूसरा मुख्य आर्कषण का केन्द्र इसका संगीत है। जो कि आजकल के भड़कीले और शोर शराबे वाले संगीत से बिल्कुल अलग है। इसके गीत शान्त और सकून देने वाले हैं। फिल्म का एक गाना ‘ख्वाजा मेरे ख्वाजा’ तो मजहब की दीवारों से ऊपर है और सकून भरा है।
इस फिल्म से जुड़ी हर बात प्रशंसा के काबिल है। इस फिल्म को देखकर अपने इतिहास के कई पहलुओं से रूबरू होने का मौका मिला। हम तो यही उम्मीद करते हैं कि हमारे बालीवुड के निर्देशक इस तरह की विषय वस्तु पर फिल्म बनाते रहें, ताकि आगे आने वाली पीढ़ी समय दर समय अपने सुनहरे इतिहास से मुखातिब हो सके।
मंगलवार, 26 फ़रवरी 2008
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5 टिप्पणियां:
ये समझ से परे है कि फिल्म की कहानी मात्र से ही लोग इतने उत्तेजित क्यों हो जाते हैं या उन्हें उत्तेजित कराया जाता है।
deepti jee,
shubh sneh. aap to khud iteehaas ke panno kee tarah chup baith gayeen thee. chaliye achha hai ki jodha akbar ne kuchh to mazboor kiyaa apko. likhatee rahein.
फिल्मों को लेकर ये सब होता ही रहता है। कई बार तो पब्लिसिटी के लिए भी लोग ये सब करते है।
deepti ji bilkul sahi kaha aapne...
aaj hum apne itihas ke baare me jada kuch nahi jante....in filmo ke jariye hi hume itihas ke kuch anchye pahluoon se rubaru hote hain...jaisa ki film me bhi bataya gaya hai ki jodha akbar ak dusre se kitna payar karte the par unke payar ke kisse yaad nahi kiye jate....
kafi achcha likha film ke baare me .lekin ye sab baval kaat kar un logo ko kya mila
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