मंगलवार, 15 जनवरी 2008

काश वो दिन फिर से लौट आयें।

सबसे पहले तो आप सभी को मकर संक्राति की बहुत-बहुत शुभकामनाऐं।
आज घर की बहुत याद आ रही है। लगभग दो माह होने को आ रहे हैं घर गये हुऐ, और त्‍यौहार में घर की कसक और भी तेज हो जाती है। हमारे उत्‍तरांचल में मकर संक्राति का पर्व उत्‍तरायणी के नाम से मनाया जा‍ता है। घर में मां के हाथ के घुघुते और बड़ों की खुशबू यहां परदेस तक मैं महसूस कर पाती हूं।

हमारे भारत में एक बात बहुत अच्‍छी है कि यहां लगभग हर माह कोई ना कोई त्‍यौहार अवश्‍य पड़ जाता है, जिस कारण लोग एक दूसरे के लिये समय निकाल पाते हैं। पर आजकल के त्‍यौहारों में वह ताजगी और अपनत्‍व की वह महक ही नहीं रही, जो मुझे अपने बचपन में देखने को मिलती थी। जब मैं छोटी थी तो देखती थी कि हर छोटे बडे त्‍यौहार को हम सब आस पास के लोग मिलकर मनाते थे। लोहड़ी के लिये सब घरों से चंदा इकटृठा किया जाता था, होली के मौके पर सब लोग एक दूसरे के घर जाकर गुझिया बनाने में मदद करते थे। और अगले दिन होली में अलग अलग टोलियां बनती थीं , उसमें होली खेलने का मजा ही कुछ और होता था।

मुझे इस महानगर में रहते हुऐ इतना समय हो गया है और इस दौरान मुझे एक ही बात महसूस हुई , वह यह कि मेरे छोटे से शहर के लोगों में जो अपनेपन की भावना देखने को मिलती है, वह इन महानगरों की बड़ी इमारतों में रहने वाले लोगों में कहीं ढूंढने से भी नहीं मिलती। यहां के लोग सिर्फ अपनी जिदंगी जीने से मतलब रखते हैं। पड़ोसी के सुख- दुख से उन्‍हें कोई लेना देना नहीं होता।

आज मन कर रहा है कि काश वो बचपन के दिन फिर से लौट आयें। काश वो मां के हाथ की मिठाइयों की खुशबू सबके दिलों मे बस जाये, क्‍योंकि उस खुशबू में प्‍यार की महक भी शामिल है। पर मैं जानती हूं कि ये जरा मुश्‍किल है।
मुझे डर है सिर्फ एक बात का कि यह शहर कहीं मुझे भी अपनी चपेट में ना ले ले।

5 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

अच्छा लिखा है। बढिया लिखा है। और लिखो। लिखती रहो।

ghughutibasuti ने कहा…

दिप्ती जी, मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ । शहर में भी मित्र बन ही जाएँगें । वैसे आजकल बहुत से शहरों में अलग अलग प्रान्तों के मण्डल भी बने हुए हैं जहाँ आप मिलकर त्यौहार मना सकते हैं । बच्चों के दूर रहने से हम भी घुघूता आदि नहीं बना रहे हैं ।
घुघूती बासूती

Sanjeet Tripathi ने कहा…

कल ही मैने राजीव जैन के ब्लॉग पर कहा था कि शहरी बनने की हमें बहुत सी कीमत चुकानी पड़ती है , वही बात यहां भी कहना चाहूंगा!!!

कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन रे भैया………कोई लौटा दे!!

आपको भी शुभकामनाएं

abhishek ने कहा…

badhai, haan shahar main kankrit ki attalikaon main rishton aur tyoharo ki garmahat kanhi titur gai lagati hai, par ummid ka alav jal raha hai, aap bhi kuch indhan dal dijiye,,,,,,,,,,,,,,

अजय कुमार झा ने कहा…

deepti jee,
shubh sneh aur makar sakranti ke parv par badhai, main bhee aksar tyohaaron par apne mata pita se bichadne ka wahee dard mehsoos kartaa hoon ab bhee jabki unse lagataar io varshon se door rah rahaa hoon . mere khyaal se ye swabhavik bhee hai aur shaayad yahee hum bhaartiyon ke vishesh pehchaan bhee hai . jahan tak shahar mein gum ho jane ki baat hai to ye to sirf aap par hee nirbhar kartaa hai .