आज की कुडियों की बात ही अलग है. नये पीढ़ी की आत्मविश्वास से भरी हुई। ऐसे-ऐसे काम, जिन पर कल तक `मेन ओनली` का टैग लटक रहा था, उसे उन्होंने उतारकर साइड कर दिया है. और जिन पेशों के बारे में उनकी नानी-दादी या मां ने सोचा भी नहीं होगा, वे उनमें ना केवल पूर्ण रूप से उतर चुकी है बल्कि सफल भी हैं।
नाम- सलोनी, उम्र-27 वर्ष, काम-ट्रेनिंग देना. ट्रेनिंग देना... यह कैसा काम हुआ. चौंकिये मत, सलोनी सच में स्कूली बच्चों को ट्रेनिंग देती है, जूडो-कराटे की. फाइटिंग-शाइटिंग तो लड़कों का काम होता है. लेकिन आजकल लड़कियां प्लेन उड़ाने से लेकर कार तक दौड़ा लेती हैं, फिर जूडो-कराटे तो छोटी सी बात है. सलोनी का मानना है, अब स्कूल टीचर और सरकारी नौकरी के दिन लद चुके हैं. हर लड़की कुछ नया करना चाहती है. इसलिये मैने जो सीखा, उसे ही अपना कैरियर बना लिया. स्कूल में रहते हुए मैने अपनी सेफ्टी के लिये जूडो-कराटे का दो महीने का कोर्स किया था और फिर इसमें मन लगा तो इसे जारी भी कर लिया.
जमाना चांद पर कदम रखने का आ गया और हमारी दादी-नानी इसी बात को लेकर सोच में पड़ी रहती हैं कि हमारी पोती किन-किन कामों को करने लगी है. इसमें न सिर्फ लड़की ने बल्कि उसके माता-पिता ने भी बड़ी हिम्मत दिखाई है. कहीं मां की जिद तो कहीं पिता का सहयोग लड़की के कैरियर की ऊंची उड़ान के लिये पर्याप्त रहा. ग्लैमर वर्ल्ड की तो लड़कियों पर नजर शुरु से ही रही, लेकिन आज रिटेल बिजनेस भी उन्हें सराहनीय आंखों से देख रहा है। आज बड़ी-बड़ी कम्पनियों की सीईओ से लेकर बोर्ड आफ डायरेक्टर्स में महिलाएं है तो फिर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट में काम करना कोई बहुत बड़ी बात तो नहीं है.`
जमाना वाकई कुड़ियों का हैं. पांचतारा होटल्स में शेफ की जगह जहां लड़कियों ने पाई है, वहीं होटल मैनेजर की भूमिका में लड़कियां दिखाई देने लगी हैं. अगर कोर्सेस की बात करें तो होटल मैनेजमेंट जैसे कई कोर्स आज प्रायवेट और गर्वमेंट अप्रूव्ड इंस्टीट्यूट में तेजी से चल रहे हैं, जहां क्या लड़के और क्या लड़कियां, दोनों इकट्ठे कोर्स कर रहे हैं।
न सिर्फ होटल मैनेजमेंट, बिजनेस मैनेजमेंट या फिर टीचिंग में लड़कियों ने धाक जमाई है, इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी उन्होंने कमाल दिखाया है।
लड़कियां तो बेधड़क एक से बढकर एक काम करने लगी हैं, लेकिन कभी-कभी ही सही, अभी भी पुरुष अपनी ईर्ष्या को यह कहकर कि तुमसे यह काम नहीं होने वाला, दिखा ही देते हैं। लेकिन सच तो यह है कि बार में बार टेंडर का काम करने से लेकर बड़े-बड़े लोगों को सिक्यूरिटी देने का और घर सजाने से लेकर घर बनाने तक का काम आज लड़कियां बखूबी कर रही हैं। काम के इन नए आयामों के साथ लड़कियों की बल्ले-बल्ले हो रही है। आज की कुडियां जब यह कहती है कि गर्ल्स द बेस्ट जान लो,,,,,,, तो यकीन ना करने की कोई गुंजाइश नही रहती।
गुरुवार, 10 जनवरी 2008
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
3 टिप्पणियां:
वैसे आपके विचार से सहमत न होने की कोई गुंजाइश नही है , किंतु कहीं -कहीं -" बन रही तल्खियां लड़कियां " अभी और मजबूत होने की जरूरत है ! आज की सूचना तकनीकी के दौर में आपकी प्रगति नि:संदेह समाज को ने दिशा देगी !
deepti jee,
subh sneh aur nav varsh ke shubh aagman par aapko haardik badhaaee. main aap se pehle bhee bahut saaree baatein kah chukaa hoon aaj phir kuchh kehne ki koshish kar rahaa hoon. ismein koi shak nahin ki aapne bahut khoobsoorti se apne blog ko stylish banaayaa huaa hai parantu naa jaane mujhe kyon lagtaa hai ki aapkaa blog khulne mein thodaa waqt lagaataa hai , ab baat aapke lekh ki . idhar kuchh dino se mahsoos huaa hai ki aap lekhan ke prati thodaa sa kam sanjeedaa hue hain naari jagat par achha lekh hai magar shaayad jyaadaa hee sakaaraatmak hai aur iskaa sheershak thodaa gambhee hotaa to jyaadaa behtar lagtaa , waise ye sirf meraa vichaar hai .
dhanyawad Ajay jee ,,,,,,aap mere lekh ko itne dhayaan se padhte hain,,,,jaankar khushi hui. aajkal vyastataa badh jane k karan main blog par jara kam dhyaan de paa rahi hoon, aapki shikayat jaayaj hai..mera blog khule me dikkat kun kar raha hai,,iska pata toh muje bhi nahi hi.aage se main aapki baaton ka dhaayan rakhungi.aur lekhan k prati jyada dhyaan dene ka pryaas karungi
एक टिप्पणी भेजें