आप कहेगें तीनों में क्या अंतर है?पर अंतर है और बहुत गहरा है। क्या कभी आपने यह जानने की कोशिश की है कि अमेरिका ,जापान और फ्रांस आदि देशों का नाम हिन्दी और अंग्रेजी दोनो भाषाओं में एक ही रहता है तो हमारा भारत क्यों अंग्रेजी में इण्डिया हो जाता है? क्यों हम उसे अंग्रेजी में भी भारत नहीं लिख या बोल पाते। सच तो यह है कि इण्डिया नाम अंग्रेजों का दिया हुआ है और यह उस बड़ी साजिश की नींव थी जिसके तहत अंग्रेजों ने संस्कृति, सभ्यता, और हमारी पहचान स्वयं हमारे ही हाथों नष्ट करने की चाल चली थी और उसमें पूर्ण रूप से सफल भी रहे। हमारे पूर्वज देश को आजाद कराने में तो सफल रहे पर जाते जाते अंग्रेज भारत को इण्डिया बना गये और हमारे पतन का बीज बो गये। और दुख और शरम की बात तो यह है कि आज हमारे देश के लोग इस चाल को समझ नहीं पाये और स्वयं ही इसे खाद पानी देते रहे। जिन अंग्रजों ने हमें 200 साल गुलाम बना कर रखा, आज उन्हीं की भाषा को हम सर माथे पर रख रहे हैं और अपनी राष्ट्रीय भाषा को हीन दृष्टि से देखते हैं। हाल तो यह है कि आज हमारी राष्ट्रीय भाषा हिन्दी केवल अनपढ़ों और गरीबों की भाषा बन गयी है और अंग्रेजी सभ्य और पढ़े लिखे होने का प्रमाण बन गयी है। मैं पूछती हूं कि क्या खराबी है हमारी हिन्दी में। क्यों हम इसे अपनाने में शरम महसूस करते हैं। वैसे एक बात मै और बताना चाहूंगी कि पूरे विश्व में सिर्फ भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां के लोग अपनी भाषा को छोड़कर अंग्रेजी के पीछे भाग रहे हैं। जबकि बाकी सारे देशों केवल अपनी राष्ट्रीय भाषा में सारे कार्य किये जाते हैं।
आज जो हिन्दी की अवस्था है,350 साल पहले अंग्रेजी भी इसी तरह अपने अस्तित्व को पाने के लिये तड़प रही थी। तब किसी अंग्रेज ने यह पीड़ा को महसूस किया होगा और अपनी भाषा के लिये संघर्ष किया होगा और यह उसी संघर्ष और कड़ी मेहनत का फल है कि आज अंग्रेजी को अंर्तराष्ट्रीय भाषा का दर्जा मिल चुका है। और अंर्तराष्ट्रीय भाषा की बात करें तो हिन्दी भाषा विश्व की दूसरी सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा है और विश्व की लगभग 7 अरब की आबादी में डेढ़ सौ करोड़ की आबादी हमारी है तो लोकतांत्रिक व्यवस्था के आधार पर हमारी राष्ट्रीय भाषा को अंतराष्ट्रीय भाषा का दर्जा मिलना चाहिये।
पर भारत में कुछ इंडियन इस बात को समझ नहीं पा रहे हैं और स्वयं को भारतवासी कहलाने के बजाए इंडियन कहलाने में गर्व महसूस करते हैं। वैसे हम भारतीयों का अपना कोई अस्तित्व शुरू से नहीं रहा है। जब जिसने हम पर राज किया उसने हमारा नामकरण कर दिया और हमने उसे खुशी खुशी स्वीकार भी कर लिया बिना यह जाने कि क्यों कोई बाहर वाला हमारे देश का नाम बदले वह भी बिना हमारी इच्छा जाने। अंग्रेजो ने गुलाम बनाया और देश को इण्डिया बना दिया। मुगलों ने राज किया तो बदल के भारत से बदल कर हिन्दुस्तान हो गया था। जबकि कुरान में हिन्दु का अर्थ होता है काफिर। पर हमने बिना कुछ सोचे समझे इसे भी अपना लिया।
सवाल यह है कि हमारी अपनी पहचान क्यों धूमिल होती जा रही है। क्यों हम दूसरों की दी हुई पहचान पर जीने को मजबूर हैं। क्यों हम अपनी राष्ट्रीय भाषा को अपनाने में कतरा रहे हैं। जवाब शायद एक ही है कि हमारे अंदर अपने देश के लिये देशभक्ति का जज्बा दम तोड़ चुका है जो हर देशवासी में होना चाहिये।जरूरत है उसे फिर से जाग्रत करने की ताकि हम अपने देश को और अपनी भाषा को खोया हुआ सम्मान वापस दिला सकें।
बुधवार, 12 दिसंबर 2007
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2 टिप्पणियां:
सहमत हे आप के लेख से.
Am commenting just because u r a journalist. And if you gonna write for newspapers tomorrow and people gonan read it then you should be keeping pace with changing times. This was one of the most regressive pieces of prose I have read recently.You need to broaden your mindset, that would go well with writing skills.
But refreshing to see a hindi blog.
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