अभी कुछ दिनों पहले एक ऐसी खबर पढ़ने में आयी जिसे पढ़कर मेरी पलकों ने कुछ सेकेण्ड के लिये झपकना बंद कर दिया।मानव जाति का इतना घिनौना रूप मैनें आज से पहले कभी नहीं देखा था। खबर थी कि पश्चिम बंगाल के एक छोटे से राज्य किसयझियौरा में एक अफजुद्वीन नामक एक आदमी ने दूसरी शादी कर ली।और वह भी अपनी ही सगी बेटी के साथ। इस बात का राज सबके सामने तब खुला जब लोगों को पता चला कि उसकी लड़की पांच माह की गर्भवती है। मानवीय रिश्तों का इससे बड़ा अपमान तो हो ही नहीं सकता। और उससे भी शर्मनाक बात यह है कि उसकी पहली पत्नी और उस लड़की की मां अभी तक जिन्दा है और उसे इस बात में कोई बुराई नजर नहीं आती। उसका कहना है कि उसका पति एक धार्मिक आदमी है और वह ऐसा कोई काम नहीं कर सकता जो अल्लाह की मर्जी के खिलाफ हो। परन्तु उसके गांव वाले उसे खासे नाराज हैं और उन्होने उसके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कर दी है।
कहने को तो हम एक आधुनिक युग में जी रहे हैं और एक सभ्य समाज के सदस्य होने का दावा भी करते हैं। पर जब इस तरह की घटनाऐं सामने आती हैं तो हमारे सारे दावे खोखले और बनावटी नजर आते हैं। इसका एक सबसे बड़ा कारण जो मुझे नजर आता है वह यह कि हम आगे तो बढ़ रहे हैं पर एक जुट होकर नहीं। अर्थात हमारे देश में समाज का एक वर्ग जो कि शिक्षित है आगे बढ़ रहा है उसकी सोच भी बदल रही है परन्तु दूसरा वर्ग जो कि अभी भी शिक्षा से कोसों दूर है,वहीं खड़ा हुआ है जहां आज से 50-100 साल पहले खड़ा था। उसकी पुरानी मान्यताऐं और रूढ़ीवादी सोच ज्यों कि त्यों है। उसकी नजरों में स्त्री आज भी केवल उपभोग की वस्तु है।
हमारा आधुनिक समाज और इसके सभ्य लोग सुनीता विलियम्स के भारतीय स्त्री होने पर गर्व तो करता है और उसके सम्मान में ताली भी बजा सकता है परन्तु देश में हो रही कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अंगुली उठाने में कतराता है। और अपने ही घर में कन्या पैदा होने पर भी उसे कोई खास खुशी नहीं होती।
हमारा पढ़ा-लिखा समाज में कहीं ना कहीं आज भी पुरानी मान्यताऐं जीवित हैं। इसे हम एक छोटे से उदाहरण से समझ सकते हैं। हमारे समाज में यदि कोई व्यक्ति जब अपने बच्चों के भविष्य के लिये धन बचत सम्बन्धी कोई योजना अपनाता है तो वह योजना सदैव बेटी के लिये उसके विवाह से और बेटे के लिये सदैव उसकी पढ़ाई से जुड़ी होती है।क्या बेटियों की शिक्षा के लिये धन नहीं जोडा जा सकता।
इसी तरह और भी कई मसले हैं जो सुलझाये जाने बहुत आवश्यक हैं।यदि हम सही मायनों मे उन्नित करना चाहते हैं तो इस तरह की घटनाओं के खिलाफ आवाज उठाना अतिआवश्यक है। लोगों की इस तरह की गलत और रूढ़ीवादी विचार धारा को बदले जाने के लिये हमारे समाज के हर तबके को जागरूक करना बहुत जरूरी है जिसके लिये सर्व जन शिक्षा को प्राथमिकता दिया जाना आवश्यक है। ताकि हमें भविष्य में इस तरह की अमानवीय घटनाओं से पुन: रूवरू ना होना पड़े।
कहने को तो हम एक आधुनिक युग में जी रहे हैं और एक सभ्य समाज के सदस्य होने का दावा भी करते हैं। पर जब इस तरह की घटनाऐं सामने आती हैं तो हमारे सारे दावे खोखले और बनावटी नजर आते हैं। इसका एक सबसे बड़ा कारण जो मुझे नजर आता है वह यह कि हम आगे तो बढ़ रहे हैं पर एक जुट होकर नहीं। अर्थात हमारे देश में समाज का एक वर्ग जो कि शिक्षित है आगे बढ़ रहा है उसकी सोच भी बदल रही है परन्तु दूसरा वर्ग जो कि अभी भी शिक्षा से कोसों दूर है,वहीं खड़ा हुआ है जहां आज से 50-100 साल पहले खड़ा था। उसकी पुरानी मान्यताऐं और रूढ़ीवादी सोच ज्यों कि त्यों है। उसकी नजरों में स्त्री आज भी केवल उपभोग की वस्तु है।
हमारा आधुनिक समाज और इसके सभ्य लोग सुनीता विलियम्स के भारतीय स्त्री होने पर गर्व तो करता है और उसके सम्मान में ताली भी बजा सकता है परन्तु देश में हो रही कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अंगुली उठाने में कतराता है। और अपने ही घर में कन्या पैदा होने पर भी उसे कोई खास खुशी नहीं होती।
हमारा पढ़ा-लिखा समाज में कहीं ना कहीं आज भी पुरानी मान्यताऐं जीवित हैं। इसे हम एक छोटे से उदाहरण से समझ सकते हैं। हमारे समाज में यदि कोई व्यक्ति जब अपने बच्चों के भविष्य के लिये धन बचत सम्बन्धी कोई योजना अपनाता है तो वह योजना सदैव बेटी के लिये उसके विवाह से और बेटे के लिये सदैव उसकी पढ़ाई से जुड़ी होती है।क्या बेटियों की शिक्षा के लिये धन नहीं जोडा जा सकता।
इसी तरह और भी कई मसले हैं जो सुलझाये जाने बहुत आवश्यक हैं।यदि हम सही मायनों मे उन्नित करना चाहते हैं तो इस तरह की घटनाओं के खिलाफ आवाज उठाना अतिआवश्यक है। लोगों की इस तरह की गलत और रूढ़ीवादी विचार धारा को बदले जाने के लिये हमारे समाज के हर तबके को जागरूक करना बहुत जरूरी है जिसके लिये सर्व जन शिक्षा को प्राथमिकता दिया जाना आवश्यक है। ताकि हमें भविष्य में इस तरह की अमानवीय घटनाओं से पुन: रूवरू ना होना पड़े।
10 टिप्पणियां:
मुसलमानो के कृत्यों पर उँगली उठाने के अपने खतरे है, इसलिए बहुत से लोग शर्मशार हो कर भी चुप हैं.
एक होश उड़ा देने वाली घटना है, पिता का पुत्री से निकाह करना.
यह बड़ी शर्मनाक घटना है जो मानवीय नैतिक मुल्यो मे लगातार हो रही गिरावट का जीता जागता उदाहरण है.
अल्लाह या भगवान् को जिस तरह मुहरा बनाया जा रहा है, निश्चित रूप से वह आदमी नाम के शै को बना कर बहुत पछता रहे होंगे.
वाकई शर्मनाक घटना है और अचंभित करने वाली बात ये की पीड़ित लड़की की माँ इसे ग़लत नही मान रहीं है.
शर्मनाक. निंदनीय.समाज की गंदगी है ऐसे लोग.
दीप्ति जी, सचमुच झकझोर देने वाली घटना है..
परंतु ऐसी घटनाओं को रोकने के लिये क्या किया जाये सवाल यह आता है.. वरना तो एक दिन गर्त में घिनोना खेल खेल रहे होंगे इंसानियत भी , रिश्ते नाते भी और धर्म सम्प्रदाय भी..
फर्क नही रहने वाला पशुता और इंसानियत में
इंसान शैतान और हैवान बन चुके होंगे..
खत्म हो चुकी होगी प्रेम और विस्वास की नीव
लिखते रहें, शुभकामनायें
नमस्कार
कुछ कहते नहीं बनता
कृपया समाचार का स्रोत व लिंक दें इससे प्रामाणिकता बढ़ेगी
masijeevi ji
सही का आपने। कुछ कहते ही नहीं बनता ऐसी खबरों को पढकर।आप इस खबर को www.bbchindi.com पर देख सकते हैं।
masijeevi ji
सही का आपने। कुछ कहते ही नहीं बनता ऐसी खबरों को पढकर।आप इस खबर को masijeevi ji
सही का आपने। कुछ कहते ही नहीं बनता ऐसी खबरों को पढकर।आप इस खबर को http://www.bbc.co.uk/hindi/regionalnews/story/2007/11/071120_father_daughter.shtml पर देख सकते हैं।
पर देख सकते हैं।
ye mushlim samaj ki ek purani parmpara hai ki wo apne hi reletive ke sath sadi ker lete hain.kintu ye wakaya apni tarah ka ek diffrent mamla hai.
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