हमारे देश के नेताओं के दिमाग की तुलना अगर चाचा चौधरी से की जाये, तो चाचा चौधरी का कम्प्यूटर से भी तेज चलने वाला दिमाग भी छोटा पड़ जायेगा। आने वाले विधान सभा चुनावों में अपनी कुर्सी की मजबूती बनाये रखने के लिये जो दांव वसुंधरा राजे सरकार ने खेला, उसकी दाद तो देनी ही पड़ेगी।
अगर देखा जाये तो पिछले कुछ दिनों से चल रहे गुर्जर आंदोलन से निजात तो मिल गयी है पर यह कहना गलत होगा कि इस मसले का स्थायी हल निकाल गया है। क्योकि दोनो ही पक्ष इस मामले का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। बैंसला जाति के लोग अभी सरकार की तारीफों के पुल बांधते हुऐ यही कह रहे हैं कि राजिस्थान सरकार ने उन्हें उम्मीद से बढकर दिया है।यह लोग अच्छी तरह से जानते थे कि यह मामला इतना बड़ा नहीं है। राजिस्थान सरकार इस मामले को ज्यादा तवज्जो ना देते हुऐ उन्हे देर सबेर एस टी का दर्जा दे ही देती। तो फिर क्या कारण था कि इस बात को एक बड़े आंदोलन का रूप देकर इतने व्यापक रूप से सारे देश में प्रचारित किया गया ? और फिर गुर्जरों को विशेष दर्जा देते हुऐ उन्हे 5 फीसदी आरक्षण तो दिया ही गया, परन्तु उसके साथ ही आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णो को भी 14 फीसदी आरक्षण देने की घोषणा की गयी।
पूरा मामला बिल्कुल आइने की तरह साफ है कि राजे सरकार यह जानती है कि सिर्फ गुर्जरों को खुश रखना ही काफी नही है। अगर उन्हें आने वाले चुनावों में अपना पक्ष मजबूत बनाऐ रखना है तो उन्हें बाकी जातियों का भी ख्याल रखना पड़ेगा। भारतीय जनता पार्टी यह जानती है कि कुछ गुर्जरो को खुश रखने के एवज मे वह अपने परम्रागत सवर्ण वोटों को नही गंवा सकते। इसलिये उन्होने उच्च जातियों को भी नाराज ना करने की अच्छी चाल चली।
लेकिन मामला तो इसके आगे आकर अटक जाता है। क्योकि गुर्जरों और आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को आरक्षण देने से यह कोटा 68% से ऊपर चला जाता है, जोकि सुप्रीम कोर्ट की तय सीमा से बाहर है। जाहिर सी बात है यह मामला अब यहां से जाकर कोर्ट मे अटक जाऐगा। यहां पर एक कहावत याद आ रही है कि ‘आसमान से गिरे और खजूर पर अटके’।
शुक्रवार, 20 जून 2008
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10 टिप्पणियां:
SATEEK LIKHA....
क्या कहें दीप्ति जी? यही तो विडम्बना है हमारे लोकतंत्र की.खैर,पैनापन है आपकी कलम में.लगे रहिए
आलोक सिंह "साहिल"
apke vicharo se sahamat hun. dhanyawaad.
अभी तो गिर ही रहे हैं, खजूर तक कहाँ पहुँचे?
विडम्बना ही है...और क्या कहा जाये.
सही विश्लेषण है, खून खराबे का अंत हुआ, यही प्राथमिकता है।
जो शातिर न हो वो राजनेता ही क्या!
सही विशलेषण.
deepti jee,
aap itne dino tak kahan gaayab rahee, kya aap bhee kisi aandolan mein lagee huee thee.
नमस्कार अजय जी,
आंदोलन ही समझिये,,,,,,,,,रोजगार की तलाश में भटक रहे थे।बस इसलिये समय नही दे पायी।पर मुझे मेरे पढने वालो ने याद रखा। यह तो मेरे लिये प्रसन्नता की बात है।
Hi!
Not bad!!!
you have done a deep study... Rajniti isi ka naam hai......
Take care
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