रविवार, 15 जून 2008

हर जगह बस आरूषि ही आरूषि‍

सुबह-सुबह अखबार का पहला पन्‍ना खोलकर देखा तो आरूषि, टी वी में न्‍यूज चैनल पर देखा तो आरूषि। आरूषि हत्‍याकांड को पूरा एक माह बीत चुका है। पर मीडिया ने इस घटना को इतनी ज्‍यादा तवज्‍जो दे रखी है कि टीवी चैनल हो या अखबार, हर जग‍ह आरूषि हत्‍याकांड की खबर छायी हुई है। और हैरानी की बात यह है कि इतनी ज्‍यादा तवज्‍जो मिलने के बाद भी पुलिस को अभी तक इस हत्‍याकांड में कोई सफलता नहीं मिल पायी है। मैं यह नहीं कहती कि किसी की बिना कारण हत्‍या हो जाना कोई गैरजरूरी बात है ,परन्‍तु यह खबर इतनी बड़ी भी नही है कि एक महीने तक अखबारों और न्‍यूज चैनलों की सुर्खी बनी रहे।

इसी माह में राजिस्‍थान के गुर्जरों के आंदोलन में कई लोग मारे गये। परन्‍तु इस खबर को केवल कुछ शब्‍दों में समेट कर लिख दिया गया या केवल जानकारी के तौर पर टीवी पर दिखा दिया गया। उन मृत लोगों के परिजनो का क्‍या हुआ, या घायलों की हालत के बारे में कोई सुर्खी नहीं बनी।
सच तो यह है कि मीडिया को खबरों की अहमियत से ज्‍यादा मतलब इस बात से है कि किस खबर से उनके चैनल की टी आर पी ज्‍यादा बढ़ेगी। इस से पहले भी इस तरह की कई घटनाओं को मीडिया वाले अपने चैनल की की बड़ी खबर बनाकर पेश कर चुके हैं। और एक समय के बाद बिना किसी नतीजे की जानकारी दिये खबरें अचानक से गायब हो जाती हैं। क्‍योकिं न्‍यूज चैनल को एक नयी खबर मिल जाती है , जिसे वह अगले कुछ दिनों तक अपने चैनल पर हैडलाइन बनाकर पेश करते रहते हैं।‍ निठारी कांड, किडनी कांड और भी ना जाने ऐसे कितनी खबरें है जो कुछ दिन तक तो टी वी चैनलों और अखबारों की सुर्खियां बनी रहीं , पर आज उन केसों का क्‍या हुआ, इस बारे ना कोई जानना चाहता है और ना कोई चैनल बताना। कुछ दिन इंतजार कीजिये, आरूषि की घटना से बडी खबर मिलते ही आरूषि की खबर ऐसे गायब हो जायेगी जैसे कुछ हुआ ही ना हो।

6 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

आपका कहना सही है की आरुशी हत्याकांड का व्यापक प्रतिक्रिया हुई थी और अभी भी उसके समाचार को प्राथमिकता दी जा रही ,शायद यह देश की राजधानी मे घटना घटित होने से भी है जो खबरों का केंद्रबिंदु होता है,इन सभी कारणों से एनी समाचारों को वह स्थान नही मिल पाया जो उसे मिलना चाहिए था,

पी के शर्मा ने कहा…

कौन जाने क्‍या हुआ कैसे हुआ
आरुषि की मौत ने दिल को छुआ
प्रश्‍न जो उत्‍तर बिना हैं आज तक
क्‍यों मसल डाली कली कचनार की

कौन कहता आरुषि तू मर गयी
खूबसूरत जिंदगी से डर गयी
हर वक्‍़त रहती है नज़र के सामने
रोज बनती है खबर अखबार की

Bhaskar ने कहा…

Hi.... At last a blog frm you...
It not only aarushi case now a days look at the quality of media coverage... and its just a media hype!!! what do you think that aarushi is the fist case ... no there are 100s of aarushi mudred ever day in India... its jst the media pick this one ....

दीप्ति गरजोला ने कहा…

नमस्‍कार भास्‍कर जी,
आपने मेरे ब्‍लाग को अपना कीमती वक्‍त दिया, इसके लिये शुक्रिया। आप सही कह रहे हैं कि आजकल हमारे मीडिया का स्‍तर गिरता जा रहा है। मैने भी अपने लेख में यही कहने की कोशिश्‍ा की है।आरूषि जैसी घटनाऐं को माध्‍यम हैं अपने चैनल की टी आर पी बढानें का।

संजय शर्मा ने कहा…

बहुत ही सही लिखा है आपने हर केस का फोलो अप मिडिया करती रहती तो शायद हर क्षेत्र मे बबाल कम होता .किसी गाँव की आरुशी होती तो एक लाइन की ख़बर भी न बनती .

wandererajay ने कहा…

Hi,
aapne achha likha. badhai. hum media kay logo ko aatmvishleshan karna chahhyey. i also tried to write few lines on my blog. indiahulchul.blogspot.com on this perticular issue.