बुधवार, 2 जनवरी 2008

और बेनजीर सचमुच चली गयी…….

मुझे तो अब तक यकीन ही नहीं हो रहा है कि बेनजीर भुटृटो अब हम लोगों के बीच नहीं है। उनकी हत्‍या ने सारी दुनिया को जड़ कर दिया है। यह दिल को दहला देने वाली घटना इस बात का भी सबूत है कि पाकिस्‍तान में आंतकवाद अपनी जड़ें किस हद तक गहरी कर चुका है। अलकायदा ने बेनजीर की हत्‍या की जिम्‍मेदारी लेकर इस संदेह को भी समाप्‍त कर दिया है कि बेनजीर की हत्‍या का जिम्‍मेदार कौन है?

वैसे अगर देखा जाये तो बेनजीर भुटृटो की जान पर खतरे के संकेत उसी समय मिल चुके थे जब बरसों बाद बाहर रहने के बाद दो महीने पहले ही वतन लौटी बेनजीर पर कराची में उनके स्‍वागत के लिये उमड़ी भीड़ को निशाना बनाकर आत्‍मघाती विस्‍फोट किये गये थे, जिसमें वह तो किसी तरह बच गयी थी पर करीबन डेढ़ सौ लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। उन्‍हें जान से मारने की धमकियां तो पाकिस्‍तान लौटने से पहले ही मिल रही थीं कि यदि वह पाकिस्‍तान लौटीं तो अंजाम अच्‍छा नहीं होगा और उन पर हुऐ पहले ही हमले ने यह भी जता दिया कि वह धमकियां यर्थाथ के कितने नजदीक थीं। उन पर हुऐ हमले के मदृदेनजर उनकी सुरक्षा को भी बढा दिया गया था। परन्‍तु फिर भी आंतक वादी अपने मकसद मे कामयाब हुऐ। आश्‍चर्य की बात तो यह है कि उन पर यह हमला रावल पिडीं मे हुआ जिसे सेना का गढ़ माना जाता है। आंतकवादियों की इसी हिम्‍मत से पता चलता है कि पाकिस्‍तान में आंतकवाद किस हद तक अपनी जड़ें जमा चुका है।
बेनजीर भुटृटो को सियासत विरासत में मिली हुई जागीर की तरह थी जिसे उन्‍होनें अपने पिता की वजह से ग्रहण तो बेमन से किया था परन्‍तु एक बार इस समन्‍दर में उतरने के बाद वह सबसे तेज तैराक साबित हुईं। पाकिस्‍तान जहां पुरूषों का देश की राजनीति में एकछत्र राज्‍य था, वहां उन्‍होने 19 साल पहले प्रधानमंत्री पद की शपथ ले‍कर पाकिस्‍तान की राजनीति में अपना नाम ऐतहासिक और सुनहरे पन्‍नों में दर्ज करा लिया। इतिहास के पन्‍नों में ऐसा पहली बार हुआ था कि मुस्लिम देश की कमान एक महिला प्रधानमंत्री के हाथों मे आयी थी। इसी कारण वह सारी दुनिया के लिये भी आधुनिकता का प्रतीक बन गयी थीं। वह हमेशा से ही पाकिस्‍तान को एक सेकुलर और आधुनिक मुल्‍क बनाना चाहती थीं। बेनजीर की यही चाहत कटृटरपंथियों की आंखों में खटकती थीं।
अब सवाल यह उठता है कि बेनजीर के बाद पीपुल्‍स पार्टी के नये अध्‍यक्ष बने उनके बेटे बिलावल मे वह जज्‍बा देखने को मिलेगा जो बेनजीर में था या फिर पाकिस्‍तान में लोकतंत्र का सपना सिर्फ सपना बनकर ही रह जाऐगा।

2 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

बोया पेड बबूल का,फ़ूल कहा से होऎ

Ramashankar ने कहा…

यह थियेटर के पर्दे के पीछे की वह कहानी है जहां नित नए नए कलाकार नए-नए रूप धारण करते हैं देखिए आगे-आगे होता है क्या. बहुत दिनों बाद चिट्ठाजगत में आया आपका लेखन देख कर अच्छा लगा. लिखते रहें.