शनिवार, 20 अक्टूबर 2007
अब त्यौहार भी हुऐ शुगर फ्री
लो फिर से आ गया त्यौहारों का सीजन।आप कहेगें तो इसमे नया क्या है,ये तो हर साल आता ही है।पर खास बात यह है कि इस आधुनिक समाज ने मिठाइयों की तरह त्यौहारों की भी शुगर फ्री कर दिया है।क्योकि जिस तरह मिठाई को मीठा बनाने के लिये चीनी की जरूरत होती है,उसी तरह से त्यौहारों की मिठास अपनों के प्यार और आपसी मेलजोल से होती है।पर ये मिठास हमारे समाज से कहीं खो गयी है।और कही तो छोडिये,ढ़ूढ़ने से अपने अन्दर ही नहीं मिलती हमें।तो बाहर किस मुंह से ढूढ़ने निकलेगें।आजकल लोग त्यौहारों को ऐसे देखते हैं जैसे कोई बिन बुलाया मेहमान आ धमका हो।जिसे आप चाहें या ना चाहें पर मनाना तो पड़ेगा ही।साल भर तो काम का बहाना करके किसी तरह हम एक दूसरे से ना मिलने के सौ बहाने ढूंढ लेते हैं।पर कम्बख्त ये त्यौहारों का सीजन सबसे सामना करा ही देता है।अब त्यौहार है तो उसकी रस्में भी निभानी होती हैं-पहले तो चीनी की मिठाई से काम चल जाता था।पर आज के जमाने मे देशी घी की मिठाई को भी देखकर लोग नाक-भौं सिकोड़ते हैं।क्यों,अरे भई जमाना ही हेल्थ काशंस लोगों का है।तो दुकानदार भी क्या करें,ऐसे तो दुकान बंद हो जायेगी।तो आया जमाना शुगर फ्री मिठाइयों का।पर ये ठीक भी है क्योंकि जब रिश्तों मे ही मिठास ना बची हो तो मिठाई की मिठास तो वैसे भी फीकी ही लगेगी।
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5 टिप्पणियां:
"क्योंकि जब रिश्तों मे ही मिठास ना बची हो तो मिठाई की मिठास तो वैसे भी फीकी ही लगेगी"।
वाह! दीप्ती जी,समाज के मुंह पर करारा कटाक्ष है।
yah u r right deepti, mithas nam ki cheej hamare samaj me se lagbhag gayab ho gayi hai. very good.
रिश्तो मे मिठास की बात आपने खूब कही. बहुत सम्वेदनशील है आप . आप जैसे लोगो की जरूरत है समाज को .
शुगर फ्री में ठीक वैसी ही नकली मिठास तो है जैसा आजके रिश्तों पर मतलब का मुल्लमा चढ़ा है. सही फरमाया. :)
article is good...but topic is very local type...dont comment on local issues only ....i would like to see your views on some other issues also..
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