बात अभी कुछ दिनों पहले की ही है। जब ‘वाइस ऑफ इण्डिया’ के विजेता रहे इश्मित की अचानक मौत हो गयी थी। सारे देश भर के चैनलों का जमावाड़ा इश्मित के घर के बाहर लग गया था। हर चैनल उसके परिजनों की तस्वीरें लेने की होड़ मे था। दुखी और सदमे की हालत में इश्मित के माता-पिता का रो-रोकर बुरा हाल था, और यही दृश्य हर कैमरामैन अपने कैमरे में कैद करना चाह रहा था। मैं खुद उस समय अपने चैनल के अंदर थी। हमारे आउटपुट के लोग चिल्ला- चिल्ला के फोन पर उन्हें रोते-बिलखते परिजनों के ऊपर कैमरा फोकस करने को कह रहे थे।
थोड़ी ही देर में जब इश्मित का शव उसके घर लाया गया तो उसके फुटेज हमारे पास आये तो मेरे एक सीनियर ने शॉट्स को देखते ही कैमरामैन की तारीफ करते हुऐ बोला ‘बहुत अच्छे शॉट्स आये हैं,इश्मित का क्लोजअप शॉट है चेहरा साफ दिख रहा है, इन्हे जल्दी से एडिट कर दो’। मैं हैरान थी कि क्या मीडिया इतना भावहीन हो गया है, उसमें क्या नाममात्र की भी मानवता नहीं बची है। अगर यही घटना उसके किसी अपने के साथ हुई होती तो भी क्या वह इसी तरह से बोलता?
ये तो केवल एक घटना थी जिसे मैनें उदारहण के देने के लिऐ बताया वरना ऐसी घटनाऐं तो रोज मीडिया के अंदर देखने को मिलती हैं। किसी खवरें केवल इसी उद्देश्य से दिखायी जाती हैं कि चैनल की टीआरपी बढायी जा सके। इलैक्ट्रोनिक मीडिया का स्तर क्या इतने नीचे गिर चुका है कि खबरें केवल मसाले की तरह इस्तेमाल होने लगी हैं। चैनल सिर्फ पैसा कमाने का जरिया बन चुके हैं और सस्ती लोकप्रियता पाने का एकमात्र जरिया है।
सोमवार, 22 सितंबर 2008
शनिवार, 20 सितंबर 2008
यादों के झरोखे से नैनीताल
मेरा कॉलेज एक काफी ऊंची चोटी पर था। जहां से सारा नैनीताल एक नजर मे समा जाता था। मेरा हॉस्टल कॉलेज के थोड़ा सा ही नीचे था। जहां मैं अपने तीनों रूमपार्टनर के साथ मैं से हम हो जाती थी। 10 से लेकर 4 बजे तक का तो समय कॉलेज में और उसके बाद का समय माल रोड पर बीतता था। मल्लीताल से तल्लीताल तक की उस मालरोड को हम कब नाप जाते थे, पता ही नहीं चलता था। मालरोड पर बैठने के लिऐ बैन्च लगी हुई हैं, पर उसमें भी कोई-कोई जगह हमारे बैठने के लिऐ खास होती थी। उन बैन्चों पर बैठकर हम अपने आने वाले भविष्य के सपने देखते थे। दो साल में हमने नैनीताल की एक-एक जगह देख डाली थी। नैना पीक, जू, टिफिन टाप, क्लिपस, राजभवन, हनुमानगढी, लैन्डस्एण्ड, लवरस्पॉइन्ट और भी ना जाने क्या-क्या………।
हमारा ग्रुप बहुत शैतानों की टोली था। वहां आने वाले टूरिस्टों को परेशान करने में हमें पता नहीं क्यों बहुत मजा आता था। आज सोचती हूं तो हंसी आती है कि कैसे कर पाते थे हम यह सब? वहां के नंदा देवी के मेले का अपना ही अलग सौन्दर्य होता है। जब नंदा-सुनंदा की झांकी निकलती थी तो सारा नैनीताल एक अलग ही रंग मे सराबोर हो जाता था।
नैनीताल में हर साल शरदोत्सव आयोजित होता है। जहां काजी नामी-गिरामी लोग शिरकत करने आते हैं। उसको देखने के लिऐ हमें क्या-क्या पापड़ बेलने पड़ते थे ये सिर्फ हम जानते हैं। दरअसल शरदोत्सव रात को 8-9 बजे से शुरू होता था। हमारा हॉस्टल वहां से काफी दूरी पर था ,और हॉस्टल में देर रात तक बाहर रहने की इजाजत नहीं थी।
नैताताल में मेरी पहली सर्दी थी और उन दिनों मेरे सेमेस्टर के पेपर चल रहे थे, हम तीनों रूमपार्टनर अपने-अपने बैड में रजाइयों मे दुबके हुऐ नोट्स रट रहे थे। अचानक………मेरी नजर खिड़की की ओर गयी, देखा तो रूई के फाहों सी बर्फ पानी की बूंदों की तरह मगर आहिस्ता-आहिस्ता गिर रही थी। ये मेरी जिन्दगी की पहली बर्फवारी थी। थोड़ी ही देर में सारा नैनीताल सफेद बर्फ की चादर से ढ़क गया था।
ऐसे ही ना जाने कितने पल हैं जो मेरी यादों के पिटारे में सहेज कर रखे हैं। अभी भी जब दिल्ली की भागती जिन्दगी से मेरा मन ऊब जाता है तो लगता है नैनीताल की शांत वादियां मुझे बुला रहीं हैं। मेरी जिन्दगी के दो साल नैनीताल की यादों से जुड़े हैं। बहुत खूबसूरत बहुत यादगार, अप्रतिम सौन्दर्य से सराबोर,,,,,,,,,नैनीताल।
हमारा ग्रुप बहुत शैतानों की टोली था। वहां आने वाले टूरिस्टों को परेशान करने में हमें पता नहीं क्यों बहुत मजा आता था। आज सोचती हूं तो हंसी आती है कि कैसे कर पाते थे हम यह सब? वहां के नंदा देवी के मेले का अपना ही अलग सौन्दर्य होता है। जब नंदा-सुनंदा की झांकी निकलती थी तो सारा नैनीताल एक अलग ही रंग मे सराबोर हो जाता था।
नैनीताल में हर साल शरदोत्सव आयोजित होता है। जहां काजी नामी-गिरामी लोग शिरकत करने आते हैं। उसको देखने के लिऐ हमें क्या-क्या पापड़ बेलने पड़ते थे ये सिर्फ हम जानते हैं। दरअसल शरदोत्सव रात को 8-9 बजे से शुरू होता था। हमारा हॉस्टल वहां से काफी दूरी पर था ,और हॉस्टल में देर रात तक बाहर रहने की इजाजत नहीं थी।
नैताताल में मेरी पहली सर्दी थी और उन दिनों मेरे सेमेस्टर के पेपर चल रहे थे, हम तीनों रूमपार्टनर अपने-अपने बैड में रजाइयों मे दुबके हुऐ नोट्स रट रहे थे। अचानक………मेरी नजर खिड़की की ओर गयी, देखा तो रूई के फाहों सी बर्फ पानी की बूंदों की तरह मगर आहिस्ता-आहिस्ता गिर रही थी। ये मेरी जिन्दगी की पहली बर्फवारी थी। थोड़ी ही देर में सारा नैनीताल सफेद बर्फ की चादर से ढ़क गया था।
ऐसे ही ना जाने कितने पल हैं जो मेरी यादों के पिटारे में सहेज कर रखे हैं। अभी भी जब दिल्ली की भागती जिन्दगी से मेरा मन ऊब जाता है तो लगता है नैनीताल की शांत वादियां मुझे बुला रहीं हैं। मेरी जिन्दगी के दो साल नैनीताल की यादों से जुड़े हैं। बहुत खूबसूरत बहुत यादगार, अप्रतिम सौन्दर्य से सराबोर,,,,,,,,,नैनीताल।
बुधवार, 17 सितंबर 2008
ये प्रलय की के कदमों की आहट है,,,,,
इनकी पदचाप किसी को सुनाई नहीं दे रही है…………ये प्रलय की पदचाप है जो धीरे धीरे हमारी ओर आ रही है। हमें लगता है कि प्रलय शायद एक दिन आऐगी और सब कुछ खत्म हो जाऐगा। पर ऐसा जरूरी नहीं है। अगर आप ध्यान दें तो आपको महसूस होगा कि पिछले कुछ वर्षों मे सारी दुनिया मे ऐसी घटनाऐं घटी हैं कि जिसमें तबाही ही तबाही हुई है। याद कीजिये वर्ल्ड ट्रेड सेंटर का हादसा, ईराक और अमेरिका का युद्ध, गोधरा कांड और भी बहुत सारे हादसे। और हाल के कुछ दिनों की बात करें तो नैना देवी हादसा, बिहार मे आयी बाढ़ विनाश का ही तो संकेत है।
पिछले कुछ दिनों मे बैंगलोर, अहमदाबाद और राजधानी दिल्ली में हुऐ लगातार बम विस्फोटों ने तो सारे देश को क्या सारी दुनिया को हिला कर रख दिया है। एक ओर ओर तो हम परमाणु परीक्षण समझौते के लिये एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर देश की सुरक्षा की अनदेखी की जा रही है। अगर हम सोचें कि ये परमाणु समझौते हमारे लिये क्यो महत्वपूर्ण है,,,,,देश की तरक्की और उन्नति के लिये ना। पर हर आम आदमी अपनी प्रगति से पहले अपनी जान की सुरक्षा चाहता है। जिसकी सरकार अनदेखी कर रही है। पाटिल का बयान आता है कि हमें विस्फोटों की जानकारी पहले से थी पर जगह और दिन नही पता था। तो क्या उनकी जिम्मेदारी यह नहीं बनती थी कि राजधानी में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत कर दिया जाऐ, चौकसी और कड़ी कर दी जाऐ। और भीड़-भाड़ वाले इलाकों मे क्लोज सर्किट कैमरे लगाऐ जायें।
ऐसे लोगों के हाथों मे सुरक्षा व्यवस्था देकर हम कैसे अपने घरों चैन की नींद सो सकते हैं?
ये तो शुरूआत है। अभी तो हमें बहुत से हादसों और विनाशकारी घटनाओं से रूबरू होना है……………….
पिछले कुछ दिनों मे बैंगलोर, अहमदाबाद और राजधानी दिल्ली में हुऐ लगातार बम विस्फोटों ने तो सारे देश को क्या सारी दुनिया को हिला कर रख दिया है। एक ओर ओर तो हम परमाणु परीक्षण समझौते के लिये एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर देश की सुरक्षा की अनदेखी की जा रही है। अगर हम सोचें कि ये परमाणु समझौते हमारे लिये क्यो महत्वपूर्ण है,,,,,देश की तरक्की और उन्नति के लिये ना। पर हर आम आदमी अपनी प्रगति से पहले अपनी जान की सुरक्षा चाहता है। जिसकी सरकार अनदेखी कर रही है। पाटिल का बयान आता है कि हमें विस्फोटों की जानकारी पहले से थी पर जगह और दिन नही पता था। तो क्या उनकी जिम्मेदारी यह नहीं बनती थी कि राजधानी में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत कर दिया जाऐ, चौकसी और कड़ी कर दी जाऐ। और भीड़-भाड़ वाले इलाकों मे क्लोज सर्किट कैमरे लगाऐ जायें।
ऐसे लोगों के हाथों मे सुरक्षा व्यवस्था देकर हम कैसे अपने घरों चैन की नींद सो सकते हैं?
ये तो शुरूआत है। अभी तो हमें बहुत से हादसों और विनाशकारी घटनाओं से रूबरू होना है……………….
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