बुधवार, 24 अक्तूबर 2007

खुद ही लगाया चुनरी में दाग


कल रानी मुखर्जी की नयी फिल्‍म ‘लागा चुनरी मे दाग’ देखने का अवसर मिला।यश राज की हर फिल्‍म की तरह इसमें भी खूबसूरत लोकेशन और प्रसिद्ध कलाकारों की भरमार थी।पूरी फिल्‍म की कहानी रानी मुखर्जी के ऊपर आधारित है और रानी ने निसंदेह:अपनी भूमिका के साथ पूरा न्‍याय किया है।पर फिल्‍म की कहानी मेरी समझ से परे है।कहानी के मुताबिक रानी मुखर्जी एक कम पढ़ी-लिखी लड़की है।जो पहली बार श‍हर आती है तो एक कम्‍पनी का बॉस उसे नौकरी देने के बदले उससे एक रात मांगता है।मजबूर रानी खराब हालातों के चलते ये सौदा मंजूर कर लेती है।पर बदले में उसे धोखा मिलता है।वह आदमी उससे कहता है कि उसके कम पढे लिखे होने के कारण उसे नौकरी नहीं मिल सकती।यहां तक तो क‍हानी सामान्‍य है पर उसके बाद कहानी ने चौंकाने वाली है।नौकरी के नाम पर अपनी अस्‍मत खोने के बाद वह लड़की बिल्‍कुल टूट जाती है।पर उसकी सहेली उससे क‍हती है कि उसे इस तरह के लोगों से बदला लेने के लिये और उसे कॉल गर्ल बनना पड़ेगा।इसके अलावा उसके पास बदला लेने का और कोई रास्‍ता नहीं है।‍और उसे पूरी तरह से मॉडर्न बनने की ट्रेनिंग स्‍वयं देती है।और रानी मुखर्जी इस काम को अपना लक्ष्‍य मान लेती है।
इसका अर्थ तो यह हुआ कि यदि कोई भी लड़की अगर इस तरह कभी धोखा खाती है तो उसे उस इंसान से बदला लेने के लिये यह रास्‍ता अपना लेना चाहिये।फिल्‍म में रानी मुखर्जी की दूसरी मजबूरी यह दिखायी गयी है कि उसके घर की आर्थिक स्थिति अच्‍छी नहीं थी और शिक्षा की कमी के चलते भी उसे कहीं नौकरी मिलना भी असम्‍भव था।मेरा तर्क यहां पर यह है कि फिल्‍म की क‍हानी के अनुसार जब उसे सिलाई कढ़ाई आती थी तो क्‍या वह उसे रोजगार के रूप में नहीं अपना सकती थी? कॉल गर्ल के पेशे के अपनाने ने किसी ने उसे मजबूर नहीं किया बल्कि वह स्‍वयं अपनी इच्‍छा से इसे अपनाती है।यह ठीक है कि उसके घर की आर्थिक स्थिति इसके संभल जाती है परन्‍तु क्‍या एक घर की खुशहाली की कीमत उस घर की बेटी की इज्‍जत हो सकती है?कभी नहीं।मुझे समझ नहीं आया कि आखिर निर्देशक इस फिल्‍म के जरिये समाज में क्‍या संदेश देना चाहता है।क्‍या वह समाज में यह संदेश देना चा‍हता है कि किसी भी लड़की को धोखा मिलने के बाद इस तरह के कदम उठाना चाहिये या ये कहना चाहता है कि रानी ने जो कुछ किया व‍ह गलत था। अगर रानी को गलत ठहराया गया है तो फिल्‍म के अंत में उसे अकेले छोड़ दिया जाना चाहिये था परन्‍तु यहां तो दिखाया गया कि ना केवल पूरा परिवार उसे माफ कर देता है बल्कि एक भले घर का लड़का उसे अपनाने को भी तैयार हो जाता है।जो कि असल जिन्‍दगी में तो बहुत मुश्किल है।तो मेरा यह कहना है कि फिल्‍म में रानी की चुनरी का दाग उनका खुद का लगाया हुआ है जिसके लिये कोई अन्‍य कतई जिम्‍मेदार नहीं है।

6 टिप्‍पणियां:

Atul Chauhan ने कहा…

'मेरा यह कहना है कि फिल्‍म में रानी की चुनरी का दाग उनका खुद का लगाया हुआ है जिसके लिये कोई अन्‍य कतई जिम्‍मेदार नहीं है।' अच्छा हुआ आपने बता दिया।टाईम बच गया।

Unknown ने कहा…

यह बात और है की आप की समझ मै ये बात जल्दी आ गयी ..
लेकिन ओ जिन्होंने ये फ़िल्म बनाई उनको ये बात केयु नहे समझ मै आई ..
काया रानी जी ने ग़लत फ़िल्म पसंद की या फ़िल्म दिरेक्टोर ने ग़लत फ़िल्म बना दी ..
अब ये २ समझ समझ की बात बात मै टू आप से सहमत हमेसा रहा ह और रहूंगा भी
लकिन ये पार्टी पॉलिटिक्स से बच के रहना ..
ओ मोदी साहब वाली बात नहे समझ मै आ रही है ...की आप भी ....

Udan Tashtari ने कहा…

प्रोमोज देखकर तो लग रहा था कि बड़ी जबरदस्त मूवी है.

Divine India ने कहा…

बहुत ही बकवास फिल्म है… एक तमिल फिल्म की रिमेक है साथ-साथ इस प्रकार की कहानियाँ बहुत पुरानी हो चुकी हैं…।
आपने सही कहा है… जो भी काम रानी करती है डायरेक्टर ने उस चरित्र में कुछ ऐसा विश्लेषण किया कि वह चरित्र मजबूरी में कदम नहीं उठा रहा वरन अब उसे भी कोई समस्या नहीं।

राजीव जैन ने कहा…

19 अक्‍टूबर को मैंने भी यही बात कही थी कि यशराज की फिल्‍म समझ कर लोग पहुंच तो गए फिल्‍म देखने लेकिन बाहर निकले तो यही सुनने को मिला कि अगर चमक दमक की जगह स्‍टोरी पर काम कर लेते तो ज्‍यादा अच्‍छा होता।
http://shuruwat.blogspot.com/2007/10/blog-post_19.html

Unknown ने कहा…

mere najer me ajkal ki filme samaj ko kuch achha deti hi nahi hai..yaha to sirf business se matlab hai..