बात अभी कुछ दिनों पहले की ही है। जब ‘वाइस ऑफ इण्डिया’ के विजेता रहे इश्मित की अचानक मौत हो गयी थी। सारे देश भर के चैनलों का जमावाड़ा इश्मित के घर के बाहर लग गया था। हर चैनल उसके परिजनों की तस्वीरें लेने की होड़ मे था। दुखी और सदमे की हालत में इश्मित के माता-पिता का रो-रोकर बुरा हाल था, और यही दृश्य हर कैमरामैन अपने कैमरे में कैद करना चाह रहा था। मैं खुद उस समय अपने चैनल के अंदर थी। हमारे आउटपुट के लोग चिल्ला- चिल्ला के फोन पर उन्हें रोते-बिलखते परिजनों के ऊपर कैमरा फोकस करने को कह रहे थे।
थोड़ी ही देर में जब इश्मित का शव उसके घर लाया गया तो उसके फुटेज हमारे पास आये तो मेरे एक सीनियर ने शॉट्स को देखते ही कैमरामैन की तारीफ करते हुऐ बोला ‘बहुत अच्छे शॉट्स आये हैं,इश्मित का क्लोजअप शॉट है चेहरा साफ दिख रहा है, इन्हे जल्दी से एडिट कर दो’। मैं हैरान थी कि क्या मीडिया इतना भावहीन हो गया है, उसमें क्या नाममात्र की भी मानवता नहीं बची है। अगर यही घटना उसके किसी अपने के साथ हुई होती तो भी क्या वह इसी तरह से बोलता?
ये तो केवल एक घटना थी जिसे मैनें उदारहण के देने के लिऐ बताया वरना ऐसी घटनाऐं तो रोज मीडिया के अंदर देखने को मिलती हैं। किसी खवरें केवल इसी उद्देश्य से दिखायी जाती हैं कि चैनल की टीआरपी बढायी जा सके। इलैक्ट्रोनिक मीडिया का स्तर क्या इतने नीचे गिर चुका है कि खबरें केवल मसाले की तरह इस्तेमाल होने लगी हैं। चैनल सिर्फ पैसा कमाने का जरिया बन चुके हैं और सस्ती लोकप्रियता पाने का एकमात्र जरिया है।
सोमवार, 22 सितंबर 2008
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