शनिवार, 12 जनवरी 2008

लक्ष्‍मी सिर्फ धनवानों की ही अमानत क्‍यों?

मुकेश अंबानी ने अपनी पत्‍नी को ढ़ाई सौ करोड़ का विमान तोहफे में दिया। अगर यह सच है तो मेरे देश की गिनती गरीब देशों मे क्‍यों की जाती है? क्‍योंकि जिस देश में पति अपनी पत्‍नी को ढ़ाई सौ करोड़ का विमान तोहफे में दे सकता है ,वह देश गरीब कैसे हो सकता है? पर यही तो विडंबना है मेरे देश की कि मेरा देश अभी भी गरीबों का देश बना हुआ है। अभी भी देश में सर्दी की रातों में ठंड से ठिठुरकर कर मरने वालों की लम्‍बी गिनती है। गर्मी की दोपहरों में अभी भी गरीब लू से जलने को मजबूर है। अभी भी कई बार गरीब का बच्‍चा रात को भूखा सोने को मजबूर है। पर सच तो यह है कि इन छोटी-छोटी बातों से मुकेश अंबानी जैसे बड़े आदमी का क्‍या वास्‍ता?
ठीक है मैं यह नहीं कहती कि उन्‍हें अमीर होने का कोई हक नहीं है और यह भी नहीं कहती कि सारे देश भर के गरीबों की समस्‍याओं का भार उन्‍हें अपने ऊपर ले लेना चाहिये, परन्‍तु यदि इसी रकम का कोई अस्‍पताल या कोई अन्‍य ऐसी जगह का निर्माण कराते जिस से गरीबों का कुछ भला हो जाये और उसे अपनी पत्‍नी को तोहफे के रूप में सौंप देते तो उन हजारों लाखों गरीबों का आशीष भी उन्‍हें प्राप्‍त होता और गरीबों तबके के कुछ लोगों की कुछ समस्‍याओं का समाधान मिल जाता।
इसी तरह से अमिताभ बच्‍चन जैसे कुछ लोग भी हमारे देश में है जो उन मंदिरों में लाखों रूपये का चढ़ाते हैं जिनके दानपात्र पहले से ही भरे हुऐ हैं। यदि यही रकम वह अगर किन्‍हीं जरूरतमंदों की मदद के लिये खर्च कर देते तो ईश्‍वर क्‍या उनसे कुपित हो जाते।


चलिये ये सब उदाहरण उन धनवानों के थे जिन्‍होनें स्‍वयं के पैसे का दुरूपयोग किया है , परन्‍तु इस देश में तो जनता यानि कि सरकारी पैसे के दुरूपयोग करने वालों की भी कोई कमी नहीं है। इसका सबसे अच्‍छा उदाहरण तो राजस्‍थान की मुख्‍यमंत्री हैं जो सौ करोड़ तो विमान खरीदने में पहले ही खर्च कर चुकी हैं और अभी 15 करोड़ रूपये हवाई पटृटी बनाऐ जाने में खर्चे जा रहे हैं। और हास्‍यपद् बात तो यह है कि यह सब खर्चा उस राज्‍य में किया जा रहा है जहां लोग सालों से भुखमरी का शिकार हैं। जब राज्‍य का मुख्‍यमंत्री ने ही अपनी जनता से आंखे फेर ली हों तो आम आदमी अपनी समस्‍याओं की और किससे गुहार लगाऐगा?

यह एक ऐसा प्रश्‍न है जिसका जवाब पाना देश के भविष्‍य और प्रगति के लिये बहुत जरूरी है। नहीं तो इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले समय में गरीब की समस्‍या का तो पता नहीं पर शायद गरीब अवश्‍य समाप्‍त हो जाऐगा।

गुरुवार, 10 जनवरी 2008

कुडियों का है जमाना...

आज की कुडियों की बात ही अलग है. नये पीढ़ी की आत्‍मविश्‍वास से भरी हुई। ऐसे-ऐसे काम, जिन पर कल तक `मेन ओनली` का टैग लटक रहा था, उसे उन्होंने उतारकर साइड कर दिया है. और जिन पेशों के बारे में उनकी नानी-दादी या मां ने सोचा भी नहीं होगा, वे उनमें ना केवल पूर्ण रूप से उतर चुकी है बल्कि सफल भी हैं।
नाम- सलोनी, उम्र-27 वर्ष, काम-ट्रेनिंग देना. ट्रेनिंग देना... यह कैसा काम हुआ. चौंकिये मत, सलोनी सच में स्कूली बच्चों को ट्रेनिंग देती है, जूडो-कराटे की. फाइटिंग-शाइटिंग तो लड़कों का काम होता है. लेकिन आजकल लड़कियां प्लेन उड़ाने से लेकर कार तक दौड़ा लेती हैं, फिर जूडो-कराटे तो छोटी सी बात है. सलोनी का मानना है, अब स्कूल टीचर और सरकारी नौकरी के दिन लद चुके हैं. हर लड़की कुछ नया करना चाहती है. इसलिये मैने जो सीखा, उसे ही अपना कैरियर बना लिया. स्कूल में रहते हुए मैने अपनी सेफ्टी के लिये जूडो-कराटे का दो महीने का कोर्स किया था और फिर इसमें मन लगा तो इसे जारी भी कर लिया.
जमाना चांद पर कदम रखने का आ गया और हमारी दादी-नानी इसी बात को लेकर सोच में पड़ी रहती हैं कि हमारी पोती किन-किन कामों को करने लगी है. इसमें न सिर्फ लड़की ने बल्कि उसके माता-पिता ने भी बड़ी हिम्मत दिखाई है. कहीं मां की जिद तो कहीं पिता का सहयोग लड़की के कैरियर की ऊंची उड़ान के लिये पर्याप्त रहा. ग्लैमर वर्ल्ड की तो लड़कियों पर नजर शुरु से ही रही, लेकिन आज रिटेल बिजनेस भी उन्हें सराहनीय आंखों से देख रहा है। आज बड़ी-बड़ी कम्पनियों की सीईओ से लेकर बोर्ड आफ डायरेक्टर्स में महिलाएं है तो फिर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट में काम करना कोई बहुत बड़ी बात तो नहीं है.`
जमाना वाकई कुड़ियों का हैं. पांचतारा होटल्स में शेफ की जगह जहां लड़कियों ने पाई है, वहीं होटल मैनेजर की भूमिका में लड़कियां दिखाई देने लगी हैं. अगर कोर्सेस की बात करें तो होटल मैनेजमेंट जैसे कई कोर्स आज प्रायवेट और गर्वमेंट अप्रूव्ड इंस्टीट्यूट में तेजी से चल रहे हैं, जहां क्या लड़के और क्या लड़कियां, दोनों इकट्ठे कोर्स कर रहे हैं।
न सिर्फ होटल मैनेजमेंट, बिजनेस मैनेजमेंट या फिर टीचिंग में लड़कियों ने धाक जमाई है, इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी उन्होंने कमाल दिखाया है।
लड़कियां तो बेधड़क एक से बढकर एक काम करने लगी हैं, लेकिन कभी-कभी ही सही, अभी भी पुरुष अपनी ईर्ष्या को यह कहकर कि तुमसे यह काम नहीं होने वाला, दिखा ही देते हैं। लेकिन सच तो यह है कि बार में बार टेंडर का काम करने से लेकर बड़े-बड़े लोगों को सिक्यूरिटी देने का और घर सजाने से लेकर घर बनाने तक का काम आज लड़कियां बखूबी कर रही हैं। काम के इन नए आयामों के साथ लड़कियों की बल्ले-बल्ले हो रही है। आज की कुडियां जब यह कहती है कि गर्ल्‍स द बेस्‍ट जान लो,,,,,,, तो यकीन ना करने की कोई गुंजाइश नही रहती।