शनिवार, 20 सितंबर 2008

यादों के झरोखे से नैनीताल

मेरा कॉलेज एक काफी ऊंची चोटी पर था। जहां से सारा नैनीताल एक नजर मे समा जाता था। मेरा हॉस्‍टल कॉलेज के थोड़ा सा ही नीचे था। जहां मैं अपने तीनों रूमपार्टनर के साथ मैं से हम हो जाती थी। 10 से लेकर 4 बजे तक का तो समय कॉलेज में और उसके बाद का समय माल रोड पर बीतता था। मल्‍लीताल से तल्‍लीताल तक की उस मालरोड को हम कब नाप जाते थे, पता ही नहीं चलता था। मालरोड पर बैठने के लिऐ बैन्‍च लगी हुई हैं, पर उसमें भी कोई-कोई जगह हमारे बैठने के लिऐ खास होती थी। उन बैन्‍चों पर बैठकर हम अपने आने वाले भविष्‍य के सपने देखते थे। दो साल में हमने नैनीताल की एक-एक जगह देख डाली थी। नैना पीक, जू, टिफिन टाप, क्‍लिपस, राजभवन, हनुमानगढी, लैन्‍डस्एण्‍ड, लवरस्पॉइन्‍ट और भी ना जाने क्‍या-क्‍या………।
हमारा ग्रुप बहुत शैतानों की टोली था। वहां आने वाले टूरिस्‍टों को परेशान करने में हमें पता नहीं क्‍यों बहुत मजा आता था। आज सोचती हूं तो हंसी आती है कि कैसे कर पाते थे हम यह सब? वहां के नंदा देवी के मेले का अपना ही अलग सौन्‍दर्य होता है। जब नंदा-सुनंदा की झांकी निकलती थी तो सारा नैनीताल एक अलग ही रंग मे सराबोर हो जाता था।
नैनीताल में हर साल शरदोत्‍सव आयोजित होता है। जहां काजी नामी-गिरामी लोग शिरकत करने आते हैं। उसको देखने के लिऐ हमें क्‍या-क्‍या पापड़ बेलने पड़ते थे ये सिर्फ हम जानते हैं। दरअसल शरदोत्‍सव रात को 8-9 बजे से शुरू होता था। हमारा हॉस्‍टल वहां से काफी दूरी पर था ,और हॉस्‍टल में देर रात तक बाहर रहने की इजाजत नहीं थी।

नैताताल में मेरी पहली सर्दी थी और उन दिनों मेरे सेमेस्‍टर के पेपर चल रहे थे, हम तीनों रूमपार्टनर अपने-अपने बैड में रजाइयों मे दुबके हुऐ नोट्स रट रहे थे। अचानक………मेरी नजर खिड़की की ओर गयी, देखा तो रूई के फाहों सी बर्फ पानी की बूंदों की तरह मगर आहिस्‍ता-आहिस्‍ता गिर रही थी। ये मेरी जिन्‍दगी की पहली बर्फवारी थी। थोड़ी ही देर में सारा नैनीताल सफेद बर्फ की चादर से ढ़क गया था।

ऐसे ही ना जाने कितने पल हैं जो मेरी यादों के पिटारे में सहेज कर रखे हैं। अभी भी जब दिल्‍ली की भागती जिन्‍दगी से मेरा मन ऊब जाता है तो लगता है नैनीताल की शांत वादियां मुझे बुला रहीं हैं। मेरी जिन्‍दगी के दो साल नैनीताल की यादों से जुड़े हैं। बहुत खूबसूरत बहुत यादगार, अ‍प्रतिम सौन्‍दर्य से सराबोर,,,,,,,,,नैनीताल।

14 टिप्‍पणियां:

PD ने कहा…

कालेज की यादें बहुत खास होती है सभी के लिये.. चाहे वो नैनीताल में हो या वेल्लोर में.. आपने मुझे मेरा कालेज याद दिला दिया..

मिथिलेश श्रीवास्तव ने कहा…

अच्छा प्रतिबिम्ब दिख रहा है...अपनी यादों का हू-ब-हू अक्स नजर आ रहा है...बहुत खूब दीप्ति जी !

मिथिलेश श्रीवास्तव ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जितेन्द़ भगत ने कहा…

इसे जारी रखना चाहि‍ए था,आपने जल्‍दी खत्‍म कर दी। आप इसे और वि‍स्‍तार से बता सकती थी-

'वहां आने वाले टूरिस्‍टों को परेशान करने में हमें पता नहीं क्‍यों बहुत मजा आता था। आज सोचती हूं तो हंसी आती है कि कैसे कर पाते थे हम यह सब?'

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

deeptiji,
purani yadon ko sahejna kisi khoobsurat khwab mein jeeney ki tarah hi lagta hai. nainital wakai bahut sundar jagah hai. naina devi temple ke aaspaas jheel aur pahad key najare aur paryatkon ki toliyan alag aanand ki anubhuti karati hain. aapney bahut achcha likha hai.

Udan Tashtari ने कहा…

अच्छा लगा आपकी यादों के पिटारे से निकले पन्नों को पढ़ना..और लाईये.

Manish Kumar ने कहा…

कैसे परेशान किया जाता था घुमक्कड़ों को अगर इस बात का भी खुलासा होता तो और अच्छा लगता !

दीपान्शु गोयल ने कहा…

आपने तो मुझे नैनीताल के दिनो की याद ताजा करा दी है। वाकई इतनी शानदार और दिलकश जगह है नैनीताल की आप एक बार चले जाये तो जिंदगी भर भूला नहीं सकते।

श्रीकांत पाराशर ने कहा…

Aapne apni yadon ko sanjidgi se sabdon men sanjoya hai aur hamen bhi un yadon ke jharokhon ka avlokan karne ka mouka diya hai, dhanywad.

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

deeptiji,
kutch aur likhiye.

http://www.ashokvichar.blogspot.com

viseshank ने कहा…

hi , very good , mane hindi me ek weekly news paper start kiya hai . aap likhana pasand karege .... , VISESHANK, HINDI WEEKLY, PL CALL ME 09702888833, G. PUROHIT.

बेनामी ने कहा…

Hi Deepti,

bahut acha laga apka blog pad ke. Mujhe mere hostel days yaad aa gaye. ham bhi itane hi shetaniya karte the apki tarah apne college me. apne mujhe prarerit kiya apna ek blog banane ko...........

trivikram prasad ने कहा…

Dear Deepti ji, Apne Nainital me jo do saal bitaye. unki yadon ke baare me likha. aur ye bhi likha ki jab Aap Delhi ki bhag-daud se bor ho jati ho to apka man karta hai, ki Nainital ki wadiyon me chali jaun. Main Nainital kewal 2 bar gaya hun. Main bhi delhi me rahta hu. yahan ki bhabgambhag se main bhi pareshan hun. Aapne Nainital ki yaad dila di. man karta hai ki panchi ban jao, aur furr se Nainital pahuch kar jheel me Boating kru. aur China Peak ki choti par chad jaon. aur Mal Road par der raat tak ghoomu.

sujeetksingh16@gmail.com ने कहा…

apaka lekhan adbhoot hai!